क्या यही हमारा हिन्दुस्तान है

 

दाने- दाने  को  विलख  रहे बच्चे

आने-आने को तरस रहा इनसान है

हर  तरफ़  गरीबी,  भूखमरी, लूट-

पाट ,   नृशंसता ,  महामारी   है

धर्म,रीति-नीति अखिल म्रियमाण है

क्या  यही  हमारा  हिन्दुस्तान  है

अतल  गर्त  में  पड़ी  झींख  रही, सभ्यता  हमारी

मनुष्यत्व  का रक्त, कृमि  बन  मानव  चूस रहा है

जीवन  तृष्णा , प्राण  क्षुधा  और   मनोदाह   से

क्षुब्ध,  दग्ध, जर्जर  मनुज  चीत्कार  भर  रहा है

घृणा ,द्वेष की उठी आँधियाँ,मनुज रक्त की लहरों पर

नाच  रही हैं  धर्म का दीपक भुवन में बुझ चुका है

तभी स्मशान में परिवर्तित हो जा रहा जीवन प्रांगण

सत्य   ओझल, सामने   केवल    व्यवधान    है

क्या     यही     हमारा     हिन्दुस्तान      है

शीलमयी सकुचायी नारी,पत्तों से ढँक रही तन है

सर  पर  कूड़े  की  टोकड़ी, अर्द्ध् खुला  वक्ष है

कुसुमकुसुम में वेदना है,नयन अधर में शाप है

गंगा  की  धारा  सी  बह  रही, अश्रुजल  है

सभ्यता   क्षीण, बलवान   हिंस्र   कानन   है

क्या    यही     हमारा      हिन्दुस्तान   है

धुआँ- धुआँ  सब  ओर, चहु  ओर  घुटन है

देश  की  सीमा पर  लड़ रहे  हमारे घायल

वीर  जवानों  का  गर्जन  गुंज  है ,  तरंग

रोष  ,  निर्घोष ,  हाँक   है ,  हुंकार   है

रुंड मुंड के लुंठन में नृत्य करता कीच है

मनुज के पाँवों तले मर्दित,मनुज का मान है

क्या   यही   हमारा    हिन्दुस्तान     है

 

 

 

लगता  हमारे देश  के राजनीतिग्यों ने

आज के भारत को ध्वंश कर,नव भारत

निर्मित  करने ठान  लिया है, तभी तो

रज कण में सो रही किरण को दिखला-

कर  कहता, प्रकृति यहाँ गंभीर खड़ी है

इसे मनाने,हमें आँसू का अर्घ चढाना है

रक्त  पंक जब धरणी  होगी तभी

रोग, शोक, मिथ्या,अविद्या मिटेगी

तभी खो रही सैकत में सरि बहेगी

क्योंकि  जग  की आँखों के पानी

से    ही    सागर,  महान   है

यही    हमारा   हिन्दुस्तान   है

बदलकर  हम  चिर विषण्ण धरती का आनन

विद्युत   गति  से  लायेंगे  उसमें   परिवर्तन

वर्ग को राष्ट्र से अधिक श्रेय मिलेगा,जीवन की

करुणांत  कथा का पट-पट  पर बयान  रहेगा

ऐसा   हमारा    नया    हिन्दुस्तान   होगा

मैं  तो  कहूँगी , ऐसे  जग में   मधु  होगा

  गुंजार  होगा, धूसर धूसरित  अम्बर  होगा   

कृश    सरित ,  पंकिल     सरोवर    होगा

दुर्बल   लता   पर   म्लान   फ़ूल   खिलेगा

तड़पते  खग,  मृग  होंगे,  रुद्ध  श्वास   होगा

काँप-काँपकर विपट से गिर रहा,जीर्ण पत्र होगा

पलकों   पर   पावस  का   सामान   सजेगा

सुरभि रहित,मकरंदहीन हमारा हिन्दुस्तान होगा

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