जीवन की चक्रव्यूह-रचना
भेदने में असक्षम
अभिमन्यु भी नहीं
कि भीतर ही जा सकें
इसलिये
मोक्ष की मृग तृष्णा में
मोक्ष के अर्थ विकृत करते
जीवंता की परिधि से बाहर जीते हुये लोग