तलाश

दिल की गहराईयां आज कुछ हो गयी हैं ज्‍यादा
क्‍योंकि दिल को वो प्‍यार न मिला
जिसका मुझे बरसों से तलाश थी.....

तलाश करते करते थक गई आंखें
मगर वो यार न मिला
जिसको पाने की मन में प्‍यास थी.....

आज देखा जब किसी को हंसते हुए
दिल पर मेरे चल गई कटार
मेरी आंखों को वो रास न थी.....

चलने लगे हम जब अपना सब-कुछ छोड़कर
जाएंगे कहां यह पता नहीं
मुझे किसी मंजिल की तलाश न थी.....

शायद वीरान ही रहेगी जिंदगी मेरी
जिस तरह पहले भी रहती थी
पहले भी तो इसे कोई आस न थी.....

जी लेंगे अब अकेले हम यही सोचकर
दर्द बांटने के लिए जिसको ढूंढा
शायद उसे ही हमारी तलाश न थी.....
 
मुकेश पोपली
 

 
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