चुनावी मुक्तक


शशांक मिश्र भारती

नेताओं का देखो राष्ट्रव्यापी पहनावा है कैसा,
नीतियां वही चोला का चोली सा बाना है वैसा।
देश की बदली परिस्थितियों से उन्हें क्या लेना
सत्ता-पद में फंस गये, देश से परे है पैसा।।

बहाने को अपनाने से कुछ होता नहीं,
ढोंग का भूषण पहन आता रोना भी कहीं।
स्वंय शूल बोकर फूल खिलें सोचते हो
पाओगे वही सब कुछ जो बोया था कभी।।

वह बहारों के शहर से लाये गये हैं,
डूबते सितारों सा बचाये गये है
स्वार्थ में डूबा देखका चैंकिए नहीं
सुख-साधन ही तो बनाये गये हैं।।

रात-दिन के आश्वासनों से होता क्या
चोर लूटने लगा, गधा रेंककर करेगा क्या
स्वंय लूटखोर होकर जब चिल्लाओगे तुम
घर भरोगे अपना देश का भला करोगे क्या?

नेता बदल रहा है वादा बदल रहा है,
अदला न बदली हुई इरादा बदल रहा है।
आज बना कौआ कल बन बैठे उल्लू
चोला गया कब का चोली बदल रहा है।।

आसन बदल जाने से कुछ होता नहीं,
कुर्सी से परे उनने है सबकुछ कही।
जनता के हित की परिभाषा भी क्या?
जब तक देते वो कोरे वायदों की मही।।

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