झरोखा पंकज त्रिवेदी का एक निबंध संग्रह है.पंकज त्रिवेदी की पुस्तक 'झरोखा' में
कुल 25 ललित निबंध हैं। लेखक गुजराती व हिंदी के जाने माने स्तंभकार होने के साथ
साथ पत्रकार भी है. शायद यही वजह है कि उनके द्वारा लिखा गया यह निबंध संग्रह सही
मायने में उस खिड़की को दर्शाता है,जहाँ से आम आदमी अपनी निजी जिंदगी को काफी
नजदीकी से देख सकता है.गुजराती लोकोक्तियों ,कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग कर
पंकज त्रिवेदी ने अपने निबंधों में नई मिठास घोल दी है .इस पुस्तक का प्रत्येक
निबंध अपने आप में एक मिसाल है तथा पाठकों के लिए एक सारगर्भित सन्देश छोड़ जाता है.
पंकज त्रिवेदी जी की भाषा शैली अंत्यंत ही सरल , सहज और प्रभावशाली है . भाषा का
प्रवाह तो देखते ही बनता है .जहां उन्होंने आम जिन्दगी की रोजमर्रा की घटनाओं का
बड़ा ही बेबाकी से जिक्र किया है वहाँ उन्होंने आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार
प्रदान करने की गुहार भी लगाईं है .उन्होंने अपने निबंध " दादा जी और पोत्र" "पालने
घर से वृद्धाश्रम तक " और " बाल मजदूरी और हमारी संवेदना" में मानव मन की अंतस
संवेदनाओं को उजागर किया है वहीँ " मूल्य जीवन और शिक्षा का" "विचार तो वेदवाणी "
"पेट भरता है जेब कभी नहीं " निबंधो में आने वाली पीढ़ी को सचेत किया है . ठीक इसी
प्रकार अपने झरोखे से आम आदमी को झाँकने वाले निबंध "चाय पीने का मेरा भी मन है" ,"
नुक्कड़ पे पान की दूकान" ," मुंबई हो या पटना " अपने आप में एक उदहारण है , जबकि
"हृदय के हस्ताक्षर" ,' बंद मुट्ठी एक नए सूर्य के साथ" "प्रेम से परमात्मा की और"
आध्यात्मिकता के साथ आत्मावलोकन का भी समावेश है .
"चाय पीने का मेरा मन है" निबंध में लेखक ने हमारे देश में काश्मीर से कन्याकुमारी
तक अलग अलग किस्मों के चाय के पीने ,उनके आर्डर देने की ख़ास स्टाइल के बारे में
दर्शाया है .लेखक ने दार्जिलिंग की चाय का बहुत ही खूबसूरत अंदाज में वर्णन किया है
मानो आपके मन को भी उस चाय की असली सुगंध तरोताजा कर दें .
"नुक्कड़ पे पान की दूकान "निबंध में लेखक ने हमारी संस्कृति में पान खाने की परंपरा
और उसकी महिमा का जिक्र किया गया है .निबंध में उल्लेखित गुजराती कवि रमेश पारिख की
पंक्तिया "शेरीना छेड़ा पर पान की दूकान" मन में पान के प्रति एक उमंग पैदा करती है
. गुजराती भाषा के आदिकवि श्री नरसिंह मेहता के वंशज में आज भी पान अतिप्रिय है.
लेखक ने पान के विभिन्न प्रकार बनारसी,कलकती,बंगाली,कपूरी,काला कच्चा और पक्का पान
इत्यादि का उल्लेख करते हुए पान की अहमियत के साथ साथ उसे हमारे धर्म ,समाज और
सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग बताया है .
"मुंबई और पाटन "निबंध में लेखक ने आज की क्षेत्रीयवाद की राजनीति के एक गंभीर
मुद्दे को हमारे सामने रखा है .जहां राज ठाकरे तथा आनंदी बहन जैसी विनाशकारी
शक्तियां हमारे देश को तोड़ने में लगी है ,अराजकता फैलाने के लिए उतावली है ,वहीँ
लेखक के अनुसार हमारी प्राचीन परम्परा और विद्याभ्यास के द्वारा देश की विघटनकारी
शक्तियों पर काबू पाया जा सकता है .
"प्रेम से परमात्मा की ओर" निबंध में प्रेम के ज्योतिस्वरूप की व्याख्या की गयी
है.गुजराती साहित्यकार च.ची.मेहता का उदाहरण देते हुए प्रेम के मर्म को समझाने का
प्रयास किया गया है ,उनके अनुसार प्रेम का अर्थ किसी अन्य के जीवन में समर्पित उजास
फैलाने से है .
"मूल्य: जीवन और शिक्षा का" में लेखक ने मूल्य की खोज को 'स्व' से 'सर्वस्व 'तक लेज
आने वाली प्रक्रिया बताया है .सही अर्थों में हमारे अन्दर का अहंकार या किसी के
प्रति कटुता के भाव हमारे व्यक्तित्व को निस्तेज कर देते हैं ,इसलिए किसी भी इंसान
के अवगुणों को देखने के बजाय उसके अन्दर की अच्छाई को समाज के सामने लाना चाहिए
"विचार तो वेदवाणी" निबंध एक मौलिक चिंतन है ,जहाँ विचार वेदवाणी का काम करते है
,वहीँ कुविचार विकार पैदा करते हैं .जिस स्वरुप में विचार बाहर आता है उसी स्वरुप
में वह
अपना रूप धारण कर लेता है .
"मनोवृतियों की घुटन"निबंध में लेखक ने आज की स्वार्थपरस्त राजनीति पर करार आघात
किया है .जहाँ हमारी घुटन पानी की लाइन में खड़ी,मिटटी या गैस के लाइन में खड़ी है
,बच्चों के दाखिले के लिए डोनेशन देने के लिए तैयार है,जब बड़ी हो रही बेटी कुत्ते
से चिपकी किलनी जैसे दिखने लगती है तह वह घुटन भी बैचेन हो जाती है और बैचेन घुटन
हमारे गले में चिपक जाती है ......आदि वाक्यांशों के द्वारा लेखक ने हमारी
मनोवृतियों को समझाने का सफल प्रयास किया है .
इस प्रकार अनेकों निबंध ऐसे है जिस पर लेखा ने अपनी पैनी दृष्टि डाली है जो हमे आम
समाज के हर पहलुओं से अवगत कराता है . पाठकों को यह निबंध संग्रह अवश्य पसंद आएगा .
पुस्तक का वर्णन इस प्रकार है :-
शीर्षक :- झरोखा (ISBN-978-81-910385-1-4)
लेखक:-पंकज त्रिवेदी
प्रकाशक :-हिंद युग्म ,नई दिल्ली
संस्करण :-२०१०