महिलाएं अनेक पर समस्या एक
-कौशलेंद्र प्रपन्न

‘पियरी का सपना चैदह कहानियों का एक ऐसा झरोखा है जिससे हम महिलाओं की समाज, घर- परिवार में क्या और किस कदर बर्ताव किया जाता है, का दृश्य साफतौर पर देख सकते हंै। इस कहानी संग्रह की खासियत ही यही है कि जीवन के अलग-अलग रंगों में भीगी अनभीगी अनेक महिलाओं की छवियां पकड़ी गई हैं जो स्थूल आंखों में चुभती तो हैं लेकिन उसके समाधान की बात आते ही अपने फायदे की सोच में जकड़ जाते हैं। प्रकारांतर से एक नए कोण से महिला की भूत वर्तमान और आगामी समय में उनकी जद्दो- जहद कितने स्तरों पर जारी रहेगी आदि की
बारीक रेशे इन कहानियों में पहचाने जा सकते हैं।
‘छूटकारा ‘आवारा न बन ‘जवाबी कागज ‘हम बच्चों की कहानी’ टाईटिल कहानी ‘पियरी का सपना’ कहानियां एक अलग बानगी पेश करती हैं। मैत्रेयी पुष्पा की इस कहानी संग्रह को पढ़ते वक्त समय का वह अध्याय भी खुद-ब-खुद ख्ुालने लगता है जो आज हमारी आंखों से ओझल हो चुकी है। लेकिन लेखिका ने उन अनुभवों को बचा कर पाठकों के सामने बड़ी की करीने से रखा है।
एक तरफ ‘छुटकारा’ कहानी की छज्जो बच्ची से वृद्धावस्था तक जिस गांव घर की संड़ास साफ करती पूरी जिंदगी काट देती है, लेकिन सम्भ्रांत लोगों के गांव में बसना कितना कठिन रहा इसकी तफ्सील से विमर्श मिलता है। साथ ही इस कहानी में एक अहम सवाल खड़ा होता है क्या आज भी छोटी जात के लोग अगड़ों की बस्ती में नहीं रह सकते। कहानी की मुख्य पात्र छज्जो और उसकी बेटी के बीच दो कालखंड़ के बीच वैचारिक एवं पुश्तैनी काम के प्रति बदलती नजर आदि में चल रही कसमसाहट मिलती है। छोटी जात की महिलाओं के साथ बड़े जात के मर्द कैसे रिश्ते बनाना चाहते हैं उसकी भी झलकी इस कहानी में मिलती है। एक जगह छज्जो कहती है, ‘पहले अपने चुटियाधारी खसम से पूछ कि हमने वह रिझाया कि हमें वह रिझा रहा था। मैं कहती हूं कि क्यों बूढ़े की लंगोटिया खोलूं। आज हमारा मुंह देखकर अन्न-पानी त्यागे बैठा है, और वहां आकर हमारी चूतर चाटता था।’ इस कहानी में छज्जो की जबान से निकली गाली सहज और अश्लील नहीं लगती। बल्कि वह संवाद में घुली मिली है। वहीं बचपन के स्कूली अनुभव पर टिकी कहानी ‘हम बच्चों की कहानी’ बड़ों की पूर्वग्रह की जड़ किस प्रकार बच्चों के बालमन में बो दी जाती है इसका बेहद ही मर्मस्पर्शी वर्णन मिलता है। बेशक आज की तारीख में पढ़कर ताज्जुब हो सकता है, लेकिन यह तब एवं आज भी गांवों में घटने वाली हजारों घटनाओं की याद दिलाती है। कहानी की शैली, शब्दों, संवादों की बुनावट ठेठ देशज होने के बावजूद कहीं भी खटरास नहीं पैदा करते।
कौशलेंद्र प्रपन्न
6/54, विजय नगर डबल स्टोरी
दिल्ली 110009
9891807914

 

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