वो आख़िरी ख़त उसका ज़ज्बाती निकला, जो पढ़ सके, आँख से उनकी आसूँ निकला, लफ्ज़ ना कोई एक जुबाँ से उनकी निकला, निगाह में जिनकी वो कागज़ कोरा निकला ।
' रवीन्द्र '