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मज़बूरियाँ

 

 

एक तरफ़ तुम हो, एक तरफ़ दुनिया है,
इधर बढ़े, तो उधर से घटती दूरियां हैं,
सधे कैसे ये दोनों, है इम्तेहाने-उलफ़त,
गाफ़िल है जेहन, दिल की मज़बूरियाँ हैं ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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