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नाक़ाम इश्क़

 

 

नादानियाँ मुहब्बत की, क्यूँ ना गुमनाम हो जायें,
तेरे नाम पे ये तोहमद, इश्क़ गर नाक़ाम हो जाये ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

 

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