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नज़ारे

 

 

सिलसिले चाहतों के ख़त्म नहीं होते,
सफ़र के फ़ासले भी कम नहीं होते,
तू ही बता मंज़िल मिलेगी फिर कैसे,
सामने नज़र से नज़ारे कम नहीं होते ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

 

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