www.swargvibha.in






नज़र

 

 

ये शायरी नज़र है, उस नज़र को,
पीते हैं जिसे, मिला कर नज़र को,
गिरते हैं सिर्फ, आँखों में साक़ी की,
उठते है सब, उठा पैमाने-नज़र को ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

 

HTML Comment Box is loading comments...
 

 

Free Web Hosting