ये शायरी नज़र है, उस नज़र को, पीते हैं जिसे, मिला कर नज़र को, गिरते हैं सिर्फ, आँखों में साक़ी की, उठते है सब, उठा पैमाने-नज़र को ।
' रवीन्द्र '