छुट्टी ना पेरोल कभी, ना ही रिहाई मांगी, क़ैदे ब-मशक्क़त, तेरी ना- रुसवाई मांगी, ज़ब्त जागीर मेरी, तसव्वुरे- जहाँ की सारी, हो सकूँ सब्त जिसमें, तेरी वो तन्हाई मांगी ।
' रवीन्द्र '