जवाँ एक रोज में, ये प्यार नहीं होता, मिले तो जहाँ में, व्यापार नहीं होता, झलकता लहज़े में, अंदाज़े-बयानी के, कसकता सीने में, इज़हार नहीं होता ।
' रवीन्द्र '