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रवीन्द्र कुमार गोयल

 

 

सकून मिलता है , राहें निकलती हैं,
रूह मेरी जब तेरी गली फिसलती है.

 

दूध वही पर अलग है प्याला,
जामन 'सत' का जिसमे डाला,
फर्क समय ने कुछ कर डाला,
आबे हयात भरा अब प्याला.

 

कैसी अद्भुत ये त्रास हुई ,
प्रिय जन भी जब साथ नहीं,
तिनका भी अब पास नहीं,
डूबन की तब आस भई.

 

कलाम लिखना मेरा शौक नहीं,
पेशा नहीं, मजबूरी भी नहीं,
लिख देता हूँ चंद अल्फाज जो,
तसव्वुर में दीदारे यार उठते हैं.

 

 

किस विधि विनय करहूँ हे राम,
पीर पयोधि उर भयो घनश्याम,
तव भक्ति उर उपजे निष्काम,
चैत्र शुक्ल शुभ नवम तब राम.

 

 

तेरे ही कूचे में तेरे दीवाने का हाल बुरा है,
मुझे काफ़िर न समझना, तुझे महज़ लापरवाह कहा है.

 

 

लगता है कि सब दोस्त ग़मगीन हो गए हैं,
कोई कमेन्ट नहीं, क्या लफ्ज़ संगीन हो गए हैं.

 

कत्ल करके खुलूस का, वो हो गए हैं चश्मतर,
चलो मान ली हमने ख़ता , अब तो रहम कर.

खुलूस - स्नेह, चश्मतर - eyes full of tears.

 

साथ मेरे दो कदम भी ना चल सका,
गम गलत था , हमसफ़र न बन सका.

 

एक तारा टूटा और इक तार टूटा,
आसमान छूटा , या मेरा रब रूठा.

 

खुशनुमा सा माहौल गुम हो गया क्यों,
ख्वाहिशों ने खेल फिर शुरू किया क्यों,
खुशनसीबी ने इंतजार खत्म किया क्यों,
खुदा रहम करे, जीना दुशवार हुआ क्यों.

 

नहीं कोई अफ़सोस कि महफ़िल में पड़ गया हूँ अलहदा,
मुश्किल था हुजूम में रहना और समझना तेरा कायदा.

 

बरसेंगी इतनी नेमतें, बाकी ना कोई उम्मीद होगी,
एहतियात से हूँ बरसों से, कभी तो मेरी ईद होगी.

 

उमड़ के आयेंगें फिर, हर तरफ से अल्फाज़,
वास्ते दस्तूर ही सही, कोई तो कहें शाबाश.

 

जब मुक़ाम पे पहुँचा , तो उसे याद आया ,
मंजिल थी कोई और, जिसे वो छोड़ आया.

 

न मांग इतना कि कोई, जिंदगी से ही महरूम हो जाये,
मालूम है उसको भी , न होगी तेरी ये मांग आखिरी.

 

तेरा मुरीद हूँ क्योंकि तू, करता है मुरादें सभी पूरी,
आखरी ख्वाहिश है , रह ना जाये अब कोई बाकी.

 

 

न राह की अड़चन, ना बना मेरा हमराह,
रहे तू अपनी जगह, मैं तो चला बे-परवाह ।

 

ख्वाबों से निकल कर, खुशनुमा सा ख़्याल आया,
मिलो तो कभी नूर से, ख्वाहिशों ने भी फ़रमाया ।

 

रंग भेद नहीं , चुनाव की प्रक्रिया है,
श्वेत हुआ तो क्या, धुआँ तो धुआँ है ।

 

इंजीनियरिंग सेवा ब्लॉक्स में आधी तमाम होती है,
मुहब्बत सच्ची उसकी , जो ता-उम्र साथ देती है ।

 

उड़ाई जब किसी ने धूल तो उड़ी,
कर ओट में आँखों को, समझ मुड़ी ।

 

 

सामने खड़ा हर कोई मददगार नहीं होता,
सर झुकाने भर से कोई शर्मसार नहीं होता,
शौक सिर्फ़ ज़रिया, फ़ुर्सते-लम्हात भरने का,
फ़ना कर दे फर्ज़ को, वो फ़नकार नहीं होता ।

 

आपकी आँखों में सच का इकरार नज़र आता है,
हसीन अब ये नज़ारा - ए - संसार नज़र आता है,
ख़त्म हो गयीं रुसवाईयाँ, दरमियाँने खलिश की,
फिज़ाओं में फिर वही, बहारे-शोख़ नज़र आता है।

 

 

गली ग़ुरबत से गुज़रा हूँ, अब तो आराम दे,
फ़कीरी हो मुक़म्मल, सब्र का सब सामान दे।

 

कमज़र्फ हूँ मगर इतना इल्म है मुझे,
पनाह में तेरी ही सदा रहना है मुझे,
ख्वाहिशें सभी जरुरी हो रहीं है पूरी,
फिर किसी और से क्या लेना है मुझे ।

 

इश्क़ और हुस्न में , इश्क़ की अज़मत है,
इश्क़ है रखवाला, ये हुस्न की किस्मत है ।

अज़मत = Greatness, महानता

 

कलम भी तेरी , कूची भी तेरी,
कूचे से गुज़री, हर तस्वीर तेरी ।

 

ज़माने में जितने भी वाकयात होते हैं,
तेरे आने से पर्दे सभी के फाश होते हैं,
कैसे कर दूँ तुझे इस दिल से रुखसत,
पहलू में तेरे गुनाह सारे माफ़ होते हैं ।

 

मेरे महबूब ये माना कि मुहब्बत में गम ही गम हैं,
ज्यादा हैं अगर हद से, मेरे हौसलों से मगर कम हैं।

 

 

स्यामल तेरा आना , ज़माने को खल गया,
कोई दे दुआ झूठी , तो कोई हाथ मल रहा ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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