www.swargvibha.in






रवीन्द्र कुमार गोयल

 

 

 

 

 

 

क़यामत सा तेरा जलवा, तौबा उसपे ये कातिल सी अदा,
है ख़ूबसूरत ये रंगे महफ़िल, बताओ तो सही इसका पता.

 

 

 

 

 

 

तेरे कूचे से जब हो के गुज़रे,
क्यूँ न तेरे दर को छूके निकले,
बे-वफ़ाई न दस्तूरे - दर तेरा ,
हमीं गाफ़िल- ए- वफ़ा निकले।

 

उम्र तमाम गुज़री , अहसास तब हुआ हासिल,
नज़र का धोखा फखत, यहाँ कोई नहीं मंजिल।

 

 

 

 

 

कश्ती को हर बार साहिल पे पाया,
भरोसे पर तेरे जब भी छोड़ आया ।

 

 

 

 

 

 

 

Free Web Hosting