' ये दोस्ती '
ये दोस्ती है अनमोल, इसको न हम कभी तोड़ेंगें,
ये कोशिश है पुरजोर, हकीकत में बदल छोड़ेंगें ।
हमें खौफ कैसा डूबने का, मौज दरिया साहिल है,
हम तो न डूबेंगे सनम, डूबने से तुमको भी रोकेंगे ।
ज़वाब देना जरा सा भी , मुश्किल न था,
सवाल भी मेरा था, कोई मुख़ालिफ़ न था ।
' शमन '
गरल सम है चपल गिरा, दृष्टि में भरी अगन है ,
कामना है कोई अधूरी , होना जिसका शमन है ।
' ख़लल '
ज़हरीली है नश्तरे - जुबां और आतिश तेरी नज़र है ,
ख्वाहिश है कोई तो, ख़त्म होने में जिसके ख़लल है ।
' खूबसूरती '
समन्दर में लगता है कि एक ज्वार आ गया है ,
नज़र का धोखा है, या फिर प्यार आ गया है ।
दिल में इक तूफान सा उठता है, आरजू - ऐ - इन्कलाब लिये,
रुक जाता है देख नन्हें चिरागों को, जिन्होंने अभी जलना नहीं सीखा.
जिस राह पे बिखरी हो नफरत , लो उससे बहुत दूर चला,
क़त्ल बेगुनाहों का है ग़र इबादत, तो मैं काफ़िर ही भला.
खुश हूँ बहुत छोटी सी दुनिया में , वफ़ा तेरी अगर मेरे साथ है,
मुबारक औरों को रोशनी जन्नत की, मुझे तो अंधेरों की प्यास है ।
मंजूर है लड़खड़ाना मगर, कुछ कदम चलने के बाद,
फिसलना लाज़मी है तूरे वफ़ा पे, मगर चढ़ने के बाद.
मैं जिन्दा हूँ भी कि नहीं , कर सकते हो जिरह,
मुझे दिखते हैं मगर, कुछ मुर्दे जिन्दों कि तरह.
दिल फरोश हैं वो मुहब्बत नहीं करते,
नफरत नहीं तो अलग चीज़ नहीं होती.
' खुदगर्ज़ी '
कर ले वही जो हो तेरी मर्ज़ी,
भुगतेगा मग़र खुदा की मर्ज़ी,
लगा उसके दरबार ये अर्जी,
खुदा-गर्ज़ बनूँ न करूँ खुदगर्ज़ी.
सफ़र जिंदगी का हिस्सों से बना होता है,
हर हिस्से का मगर किस्सा अलग होता है,
जो हो कर शुरू फिर ख़तम कहीं होता है,
सफ़र का ये हिस्सा भी लो ख़तम होता है.
कोई कह दे , इन हाकिमों से,
ना पियें लहू आवामे -जिगर का,
नादाँ नहीं पर क्यों नहीं समझते,
है भरा ज़हर इसमें सदियों का.
शराब मैं पीता नहीं, जाहिर है कि पिलाता भी नहीं,
फिर ना जाने आखिर क्यूँ , पैमाना भर जाते हैं लोग.
ज़ख्म जब सीने में कसमसायेगें,
दर्द बन के आसूँ बिखर जायेंगें ।
न पूछो किसने, ज़ख्म दिए इतने,
नक़ाब कई अपनों के उतर जायेंगें ।
इस इंतज़ार-ए-ज़वाब ने, कर दी है ज़िन्दगी तबाह,
ख़ता एक ख़त लिखने की, और इतनी बड़ी सज़ा ।