' ज़िक्र '
बे-करार थे जिनके लिये सरे शाम से,
आये तो शब भर ज़िक्र तेरा करते रहे ।
' फ़ैसला '
इश्क़ फ़िर से ग़मगीन है , वफ़ा का क़त्ल हो गया,
फ़ैसला मुंसिफ़-ए-हुस्न का, हक़-ए-क़ातिल हो गया ।
' सच '
सच है किसी से नफ़रत नहीं करता,
पर यूँ ही तो तुझे पसंद नहीं करता ।
' मज़हब '
बेहद नरम और मुलायम मेरे मौला का दिल है,
बे-रहमी भी कभी क्या रहमदिल का मज़हब है ।
' ख़बर '
किसी की पसंद या बहार का मुन्तजिर न हुआ,
तेरी रह-गुजर से पहले, वो कभी खबर न हुआ।
' कोयला '
ज़र्रा ज़र्रा कर रहा इबादत, सब में तेरा नूर है,
जिसने तुझे पा लिया, कोयला वही कोहेनूर है ।
मर्म भेद और राज सभी, दिलों के खोलेगी,
मिले जो सही निगाह , ये तस्वीर बोलेगी ।
सहे सदमे और गम बेहद बेशर्म सियासत के,
बदले अब निज़ाम, जम्हूरियत जुबाँ खोलेगी ।
तेरे आने से भी 'रवि' , किल्लत रौशनी की कम ना होगी,
गहरे अँधेरे में आशियाँ है, रौशनी चिरागे ब-दौलत होगी ।
बात किसी पेट की जरुरत की है,
या भूख ये दौलत शोहरत की है,
जरुरत इतनी भी नहीं इंसान को,
कर दे दिवालिया अपने ईमान को।
' अंजाम '
बे- नयाज़ मुहब्बत का, ये अंजाम सुहाना था,
मिल गया वो जिसका, मुन्तजिर ज़माना था ।
' लेखा '
बेबस ने आँखों से नीर बहा दिया,
अबला ने सीने से चीर गिर दिया,
हँसते रहे मद का प्याला पी कर,
भाल पर लिखा भला मिटा दिया ।
' बनेगी ख़बर '
किसी की पसंद या बागे- बहार का मुन्तजिर न था,
गुजरने से पहले राहे क़ुरबत, वो कभी खबर न था ।