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रवीन्द्र कुमार गोयल

 

 

 

 

जीवन मेरा वखरा नहीं , ये दस्ताने - आम है,
लाख समझे कोई गाफ़िल मुझे खुद से काम है ।

 

 

 

 

श्रद्धा और सियासत की दुकानें मिटाना मुनासिब न था,
सैलाब पुख्ता काबिल था, बाकी सारा शहर मिटा दिया ।

 

श्रद्धा और सियासत की दुकानें न मिटा सका,
सैलाब समझदार था, बाकी सारा मिटा दिया ।

 

 

 

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