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शुक्र - गुजार

 

 

लाख लफ़्ज़ों से उसने, चुने हैं , चुनिंदा अल्फ़ाज़ अमन के,
न निभा पाया रस्मे - वफ़ा तो क्या, वो शुक्र - गुजार तो है ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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