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उलफ़त

 

 

झरोंखे से गुलों को जब देखते हैं,
तस्वीर तेरी दिल में हम देखते हैं,
उलफ़त हमारी कम ना समझना,
जले ना दुनिया सो कम देखते हैं ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

 

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