महावीर उत्तरांचली
१.
जनक छंद की रौशनी / चीर रही है तिमिर को / खिली-खिली ज्यों चाँदनी
२.
भारत का हो ताज तुम / जनक छंद तुमने दिया / हो कविराज अराज तुम
३.
जनक छंद सबसे सहज / तीन पदों का बंद है / मात्रा उनतालिस महज
४.
कविता का आनन्द है / फैला भारतवर्ष में / जनक पूरी का छंद है
५.
सुर-लय-ताल अपार है / जनक छंद के जनक का / कविता पर उपकार है
६.
पूरी हो हर कामना / जनक छंद की साधना / देवी की आराधना
७.
छंदों का अब दौर है / जनक छंद सब ही रचें / यह सबका सिरमौर है
८.
किंचित नहीं विवाद यह / गद्य-पद्य में दौड़ता / जीवन का संवाद यह
९.
ईश्वर की आराधना / शब्दों को लय में किया / कवि की महती साधना
१०.
यूँ कविता का तप करें / डोले आसन देव का / ऋषि-मुनी ज्यों जप करें
११.
तीन पदों का रूप यह / पेड़ों की छाया तले / छांव अरी है धूप यह
१२.
बात हृदय की कह गए / जनक छंद के रूप में / सब दिल थामे रह गए
१३.
उर में यदि संकल्प हो / कालजयी रचना बने / काम भले ही अल्प हो
१४.
सोच-समझ कर यार लिख / अजर-अमर हैं शब्द तो / थामे कलम विचार लिख
१५.
काल कसौटी पर कसे / गीत-ग़ज़ल अच्छे-बुरे / 'महावीर' तुमने रचे
१६.
रामचरित 'तुलसी' रचे / सारे घटना चक्र को / भावों के तट पर कसे
१७.
जीवन तो इक छंद है / कविता नहीं तुकांत भर / अर्थ युक्त बंद है
१८.
कर हिसाब से मित्रता / ज्ञान भरी नदिया बहे / कर किताब से मित्रता
१९.
मीर-असद की शायरी / लगे हमारे सामने / बीते कल की डायरी
२०.
कविता को आला किया / मुक्त निराले छंद ने / हर बंद निराला किया
२१.
बच्चन युग-युग तक जिए / जीवन दर्शन दे रहे / मधुशाला की मय पिए
२२.
'परसाई' के रंग में / चलो सत्य के संग तुम / व्यंजित व्यंग्य तरंग में
२३.
अपने दम पर ही जिया / वीर शिवाजी-सा नहीं / जिसने जो ठाना किया
२४.
काल पराजित हो गया / सावित्री के यतन से / पति फिर जीवित हो गया
२५.
राम कथा की शान वह / है वीर 'महावीर' इक / बजरंगी हनुमान वह
२६.
वेदों का गौरव गिरा / करके सीता का हरण / रावण का सौरव गिरा
२७.
दैत्य बुध्दी चकरा गई / व्यर्थ किया सीता हरण / देवी कुल को खा गई
२८.
माया मृग की मोहिनी / हृदय हरण करने लगी / सीता सुध-बुध खो रही
२९.
राजा बलि के दान पर / विष्णु अचम्भित से खड़े / लुट जाऊं ईमान पर
३०.
कहर सभी पर ढा गया / जिद्दी दुर्योधन बना / पूरे कुल को खा गया
३१.
बनी महाभारत नई / घात करें अपने यहाँ / भाई दुर्योधन कई
३२.
गंगा की धारा बहे / धोकर तन की गंदगी / मन क्यों फिर मैला रहे
३३.
लक्ष्मी ठहरी है कहाँ / इनकी किससे मित्रता / आज यहाँ तो कल वहाँ
३४.
बात करो तुम लोकहित / अच्छा-बुरा विचार लो / काज करो परलोक हित
३५.
अपना-अपना हित धरा / किसको कब परवाह थी / गठबंधन अच्छा-बुरा
३६.
राजनीति सबसे बुरी / 'महावीर' सब पर चले / ये है दो धारी छुरी
३७.
बनी बुरी गत आपकी / रक्षा कर्मी रात-दिन / सेवा में रत आपकी
३८.
भाषा भले अनेक हैं / दोनों का उत्तर नहीं / उर्दू-हिंदी एक हैं
३९.
हिंदी की बंदी बड़ी / नन्हे-नन्हे पग धरे / दुनिया के आगे खड़ी
४०.
सकल विश्व है देखता / अनेकता में एकता / भारत की सुविशेषता
४१.
भारत का हूँ अंग मैं / मुझको है अभिमान यूँ / मानवता के संग मैं
४२.
भारत ऐसा देश है / मानवता बहती जहाँ / सबको यह सन्देश है
कवि : महावीर उत्तरांचली