उस्ताद – जमूरे, ये क्या है..?
जमूरा- कुत्ता... उस्ताद...कुत्ता...!
उस्ताद – कुत्ता हूं ? नमकहराम
जमूरा - न उस्ताद वो कुत्ता है पर आप नमक...
उस्ताद – क्या कहा ?
जमूरा - पर आप नमक दाता !
उस्ताद – हां, तो बता कुत्ता क्या करता है..?
जमूरा - ... खाता है..?
उस्ताद – क्या खाता है ?
जमूरा - उस्ताद , हड्डी और और क्या..!
उस्ताद – मालिक के आगे पीछे क्या करता है
जमूरा - टांग उठाता के
उस्ताद – क्या बोल बोल जल्दी बोल
जमूरा - सू सू और क्या ?
उस्ताद – गंवार रखवाली करता है, और क्या
जमूरा - पर उस्ताद, ये भौंकता क्यों है.......
उस्ताद :- जब भी इसे मालिक औक़ात समझ में आ जाती है तो भौंकने लगता है.
जमूरा :- न उस्ताद, ऐसी बात नही है..
उस्ताद :- तो फ़िर कैसी है ?
जमूरा :- उस्ताद तो आप हो आपई बताओ
उस्ताद :- हां, तो जमूरे कान खोल के सुन – जब उसके मालिक पर खतरा आता है तब
भौंकता है
जमूरा :- न, कल आप खुर्राटे मार रए थे तब ये भौंका
उस्ताद :- तो,
जमूरा :- तो ये साबित हुआ कि उसकी भौंक इस कारण नहीं निकलती
उस्ताद :- तो किस वज़ह से निकलती है. कोई वो खबरिया चैनल है जो जबरिया
ही अच्छा अब तो तू ही बता काहे भौंकता है कुत्ता बता ?
जमूरा :- सही बताऊंगा तो
उस्ताद :- तो क्या होगा ?
जमूरा :- तुम मेरी बात अपने मूं से उगलोगे !
उस्ताद :- तो क्या हुआ , उस बात की रायल्टी लेगा, ले लेना
जमूरा :- न, तुमको ऐलानिया बोलना होगा कि ये बात “जमूरे” ने बताई है.
उस्ताद :- बोलूंगा
जमूरा :- तो सुनो जब कुत्ता डरता है तब वो भौंकता है समझे उस्ताद !
उस्ताद :- हां,समझा
उस्ताद और जमूरे के बीच का संवाद में दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक तत्व के
शामिल होते ही सम्पूर्ण कुत्ता-जात में तहलका मच गया.
अखिल भारतीय कुत्ता परिषद में उनके नेता ने कहा :- वीर कुत्तो, हमारी
प्रज़ाती को एक मक्कार ज़मूरे ने "डरपोक" कहा है. धर्मेंदर की उमर देख के
हमने माफ़ किया , पर न केवल जमूरा वरन हम सब इन्सानों को बता देना चाहते
हैं कि अब हम किसी भी इन्सान को अपना मुंह न चाटने देंगे. मेरे कुकर
मित्रो.. ध्यान से सुनो इंसान.. इस जैसे ज़मूरे को काट पीट के उसके चीथड़े-
चीथड़े कर दो अब इंसानों में गली कूंचों तक के कुकरों का भय भर दो.. अब से
कसम खाओ.. किसी ईसान के आगे दुम मत हिलाओ..
भीड़ से एक कुत्ता बोला- नेता जी, हम क्या.. वे खुद अपनी करनी का भर रहें
हैं.. एक दूसरे को देख एक दूसरे से डर रहें हैं.. देखते नहीं एक दूज़े को
देखते ही भौं-भौं कर रहे हैं..
मित्र सानिध्य इन दिनों बेहद परेशान है. उसने कहवा घर में अपना दर्द बयां
किया “मुझे देखते ही राजेश के होश फाख्ता हो जाते हैं . हर रोज़ कोई न कोई
षड़यंत्र कोई बेकाबू बात मुझे लेकर .... और तो और मेरे खिलाफ जब देखो तब
कोई अफवाह उड़ा देना उसकी आदत सी बन गयी है...?”
अपना दर्द बयान करते सानिध्य की आँखें भर आयी थीं . मुझे लगा उसका कोई ऐसा
प्रतिद्वंदी है जो सानिध्य को अपना संकट मानता है. सो मैंने समझाने के तौर
पर पूछा दिया :"भाई,बताओ कुत्ते क्यों भौंकते हैं ?
सानिध्य इस सवाल को टाल जाने की कोशिश में लग गया कारण था उसके ह्रदय में
विषाद का अतिरेक. सो मैंने बिना देर किए झट राजेश को फोन लगा के यही प्रश्न
किया..."भई राजेश ये बताओ की कुत्ते भौंकते क्यों हैं ? "
इस बीच मैंने स्पीकर आन कर दिया था , उधर से आवाज़ आई मालिक की रक्षा का
गुण जो होता है उनमें ?
नहीं गलत ज़वाब ........!
तो सही क्या है............?
सही है यह की आप किसी के लिए आक्रामक तब होतें हैं जब वो आपके लिए खतरा सा
दिखाई दे . कुत्तों में यही मनोवैज्ञानिक समस्या होती है. उनको केवल मालिक
या संरक्षकों या रोज़ मिलने वालों से भय नहीं होता. यह प्रवृत्ति हर पशु की
होती है केवल मनुष्य को छोड़ कर . अरे अब फोन पर नहीं चलो आ जाओ काफी हाउस
में एक एक कप ...... उधर से आवाज़ थी -"साथ में कौन कौन है.?"
कौन होगा... ? अपना सानिध्य है और कौन...? इतना सुनते ही भाई ने न आने का
एक बहाना सा बना दिया.
गिरीश बिल्लोरे मुकुल