मेरा लम्बा तड़ंगा सा बेकार बेटा,
जो था आठवां फेल,
आवारा साथियों के साथ खेलता रहता था
आवारगी के खेल।
मेरे पास आया
बडे़ दिन बाद मेरे सामने पड़कर मुस्कराया,
जु़बां में चाषनी भरकर बोला,
बांदा जाने का किराया ख़र्चा चाहिये।
मैने व्यंग्यपूर्ण टोन में प्रष्न किया,
पैसे क्या पीपल के पेड़ से टपकते हैं बेटा?
पहली बार षांत रहकर उसने उत्तर दिया,
वहां नौकरी करूंगा, आप की पाई पाई चुका दूंगा।
मैं मुंह फाड़कर उसे देखने लगा,
फिर बोला,
‘तेरे फ़स्र्ट क्लास एम. ए. पास भाई को भी नौकरी मिली है,
जे तुझको मिलेगी?’
वह विष्वासपूर्वक बोला,
‘यह नौकरी खा़स हम जैसों के लिये है, मुझे अवष्य मिलेगी,
न मानिये, तो विज्ञापन पढ़ लीजिये।’
और यह कहते हुए हिदुस्तान दैनिक मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैं विस्मित होकर पढ़ने लगा,
‘ददुआ पटेल, ठोकिया मल्लाह एवं मुन्नीलाल यादव गिरोह में विषेश भर्ती
अभियान- हट्टे कट्टे बेकार नौजवानों को सुनहरा मौका,
वेतन- पांच हजा़र रूपये प्रतिमाह एवं प्रत्येक पकड़ पर वसूली के हिसाब से
बोनस,
योग्यता- मारपीट, लूट, कत्ल बलात्कार आदि में निपुणता,
परीक्षा के विशय- बंदूक रायफ़िल चलाने का ज्ञान एवं बीस किलो वज़न लादकर
जंगल में 2 मील की दौड़,
वरीयता- अनपढ़, थर्ड क्लास, पिछड़ा वर्ग एवं सजा़याफ़्ता को वरीयता परंतु
कोई आरक्षण नहीं।’
फिर अंडरलाइन करके आगे लिखा था,
‘गिरोह के सदस्य के रूप में स्थायी नौकरी करने में असमर्थता हो तो गिरोह से
बाहर रहकर पकड़ करवाने, मध्यस्थ बनकर फिरौती वसूल कराने, गिरोह के ठहरने का
प्रबंध करने, एवं पुलिस की गतिविधियों की सूचना देने की पार्ट-टाइम नौकरी
का विकल्प भी उपलब्ध है।’
विज्ञापन पढ़कर मुझे आषा बंधी,
कि चलो अब मेरे इस बेटे का कल्याण हो जायेगा।
परंतु मैं अपने बैटे की नालायकी पर इतना आष्वस्त था
कि फिर भी षंकित होकर पूछने लगा,
‘पर तू तो न पिछड़े वर्ग का है और न अभी तक सज़ायाफ़्ता है?’
म्ुाझे टोककर बेटा बोला,
‘धीरज क्यों खोते हैं, आगे का समाचार तो पढ़िये।’
आगे लिखा था कि वैसे तो तीनों गिरोहों में रिक्तियां चल रहीं हैं,
परंतु नये गिरोह ठोकिया का बहुत बड़ा एक्सपैंषन प्लान है।
अतः ददुआ गिरोह में काम करने का अवसर मिले या न मिले,
ठोकिया के यहां नौकरी पक्की समझें।’
म्ुाझे लगा कि यह तो ऐसे हुआ कि
दरोगा नहीं बन पाये तो सिपाही बन गये।
अतः मैं गम्भीर हाकर बोला, ‘बेटा तू पागल है।
अगर लोगांे के सीने में गोली ही ठोंकनीं है
तो ठोकिया जैसे छोटे गिरोह में षामिल होना तो सरासर हिमाकत है।
अरे यहीं लखनउू में दस-पांच को ठोंक दे,
बस मंत्रियों की निगाह में चढ़ जायेगा,
वे स्वयं तुझे अपनी पार्टी में मिलाने को आतुर हो जायेंगे,
अपराध करते समय खतरे से बचाने हेतु तेरी सुरक्षा में पुलिस लगायेंगे।
इस प्रकार की साल दो साल की ‘समाज सेवा’ के बाद,
बूथ-कैप्चरिंग तकनीक का समुचित उपयोग कर तू स्वयं माननीय बन जायेगा,
और ज़िदगी भर मजे़ उड़ायेगा।’
महेश चंद्र दिवेदी