आज धनतेरस हैं। पाॅंच दिन के दिपोत्सव का आगाज धनतेरस से ही होता है।
हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक बदी तेरस को धनतेरस के रूप में मनाया जाता
है। आज का दिन आयुर्वेद के अधिष्ठाता भगवान धनवंतरी का जन्मदिन है इस कारण
यह दिन धनवंतरी जयंति के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि जब
देवताओं व दानवों ने समुद्र मंथन किया तो आज ही के दिन हाथ में औषधि कलष
लेकर भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे और इनको स्वास्थ्य का देवता माना गया और
इसी रूप में इनकी पूजा हुई। इसी कारण भगवान धतवंतरी को आरोग्य का देवता
माना जाता है। मनुष्य को अपने स्वस्थ शरीर व स्वस्थ मस्तिष्क के लिए भगवान
धनवंतरी का पूजा करनी चाहिए। प्रकाष पर्व का आज प्रथम दिन है। शास्त्रों के
अनुसार आज के दिन शाम को घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से
भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दिपक रखने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर
असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। ऐसा करने से दीर्घ जीवन व आरोग्य की
प्राप्ति होती है।
आधुनिक समय में डाॅक्टर व चिकित्सा पेषे से जुड़े लोग भगवान धनवंतरी की
विषेष पूजा अर्चना कर सकते हैं।
देवी लक्ष्मी धन की देवी है और धन की प्राप्ति के लिए स्वस्थ रहना भी जरूरी
है और यही कारण है कि धन की देवी की पूजा से दो दिन पहले ही स्वास्थ्य के
देवता की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ पृथ्वी पर
घूमने आए। कुछ देेर बाद भगवान विष्णु ने लक्ष्मी को एक स्थान पर ही ठहरने
का कह कर दक्षिण दिषा की आरे प्रस्थान किया। परन्तु माता लक्ष्मी ने भगवान
विष्णु की आज्ञा नहीं मानी और उनके पीछे पीछे चल दी। कुछ दूरी पर चलने के
बाद एक गन्ने का और एक सरसों का खेत मिला, माता लक्ष्मी सरसों के फूल से
श्रंगार करने लगी और गन्ना तोड़कर चूसने लगी। भगवान लौटे तो उन्होंने माता
लक्ष्मी को गन्ना चूसते हुए देखा। इस पर भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और
माता लक्ष्मी को श्राप दे दिया कि जिस किसान का यह खेत है उसके यहाॅ तुम
रहो और बारह साल तक किसान की सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान विष्णु अन्र्तध्यान
हो गए और माता लक्ष्मी वहीं किसान के घर रह कर किसान की सेवा करने लगी।
किसान बहुत गरीब था और किसान की ऐसी दषा देखकर माता लक्ष्मी द्रवित हो जाती
है और उसकी पत्नी को देवी लक्ष्मी अर्थात् अपनी ही मूर्ति की पूजा करने को
कहती है। किसान की पत्नी प्रतिदिन माता लक्ष्मी की मूर्ति की पूजा करती है
और 12 साल जहाॅं माता लक्ष्मी स्वयं वास करे वहाॅं दरिद्रता कैसे रह सकती
है। इस प्रकार माॅं लक्ष्मी किसान को धन धान्य व सम्पत्ति सेे परिपूर्ण कर
देती है। जब बारह साल पूर्ण हो जाते हैं तो भगवान विष्णु लक्ष्मी को लेने
आते हैं पर वह किसान माता लक्ष्मी को जाने नहीं देता है। वह हठ कर लेता है
और माता का दामन पकड़ कर रोक लेता है। जब भगवान विष्णु किसान को चार
कौड़ियाॅं देते हैं और कहते हैं कि तुम परिवार सहित गंगा स्नान करने जाओ और
इन कौडियों को गंगा जल में छोड़ देना जब तक हम यहीं रहेंगे। किसान ऐसा ही
करता है। जैसे ही किसान गंगाजी में कौडिया छोड़ता है गंगाजी के अंदर से चार
हाथ बाहर निकलते हैं। किसान पूछता है कि ये हाथ किसके हैं तो माता गंगा
कहती है कि ये हाथ मेरे हैं और तुम्हें जिसने ये कोडिया दी है वे भगवान
विष्णु व माता लक्ष्मी है अतः तुम उनको अपने घर से वापस मत जाने देना वरना
तुम वापस दरिद्र हो जाओगे। वापस आने पर किसान को भगवान विष्णु पूरी बात
समझाते हैं और हठ नहीं करने का कहते हैं। तब माता लक्ष्मी किसान को कहती है
कि अगर तुम मुझे रोकना चाहते हो तो कल धनतेरस है तुम अपने घर को साफ सुथरा
रखना और रात में घी का दिपक जलाना और मैं तुम्हारे घर आऊॅंगी उस वक्त तुम
मेरी पूजा करना परन्तु मैं अदृष्य रहूॅंगी। किसान ने देवी लक्ष्मी की बात
मान ली और उन्हें जाने दिया और बताई विधि से माॅं लक्ष्मी की धनतेरस को
पूजा की। ऐसा करने से उसका घर वैभव से सम्पन्न हो गया। इस प्रकार किसान
प्रतिवर्ष माता लक्ष्मी की पूजा करने लगा। तब से धनतेरस को दिपक जलाकर माता
की पूजा की प्रथा चली आ रही है।
धनतेरस पर यम की पूजा भी की जाती है और यम के नाम का दीपक जलाया जाता है।
इस संदर्भ में भी एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार प्रचीन काल में हेम नाम
का एक राजा था। राजा हेम को संतान के रूप मंे एक पुत्र की प्राप्ति हुई।
राजा ने पुत्र की जन्मकुण्डली बनवाई और ज्योतिषियों व पण्डितों से अपने
पुत्र के भविष्य के बारे में पूछा। राजा को पंडितों ने बताया कि जब आपके
पुत्र का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन बाद ही आपके पुत्र की मृत्यु हो
जाएगी। ऐसा सुन राजा दुःख से व्याकुल हो उठा। कुछ समय बाद राजा ने पुत्र की
शादी करने का निष्चय लिया। राजा की पुत्रवधु को इस बात का पता चला तो उसने
अपने पति को अकाल मृत्यु से बचाने का निश्चय किया। राजा की पुत्रवधु विवाह
के चैथे दिन अपने कमरे के बाहर गहने व सोने चाॅंदी के सिक्कों का और धन
सम्पत्ति को ढ़ेर लगा दिया और स्वयं अपने पति को रातभर जगाकर रखा। राजा की
पुत्रवधु अपने पति को कहानियाॅं और गाने सुनाती रही। मध्यरात्रि को यम रूपी
साॅंप उसके पति को डसने के लिए आता है लेकिन वह उस धन सम्पत्ति के ढेर को
पार नहीं कर पाता और राजकुमारी का गाना सुनने में मुग्ध हो जाता है। इस
प्रकार सारी रात बीत जाती है और यम राजकुमार के प्राण लिए बिना ही वापस लौट
जाता है। इस प्रकार राजकुमारी अपने पति के प्राणों की रक्षा कर लेती है।
माना जाता है कि तभी से लोग लम्बी आयु प्राप्त करने व अकाल मृत्यु से बचने
के लिए अपने घर के बाहर यम के नाम का दीपक जलाते हैं।
एक और प्रसंग के अनुसार एक बार यमदूतों से यमराज को कहा कि अकाल मृत्यु से
हमारे मन भी पसीज जाते हैं और हम नहीं चाहते कि किसी की अकाल मृत्यु हो।
यमराज ने कहा कि हम भी क्या करें विधि के विधान के आगे हमारी भी नहीं चलती
और हमें अकाल मृत्यु जैसा अप्रिय काम करना पड़ता है। तब यमराज ने अकाल
मृत्यु का उपाय बताते हुए कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान से पूजा करने से
और दीपदान करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलेगा। अतः जहाॅं और जिस घर में
ऐसा पूजन और दीपदान होगा वहाॅ अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा। यहीं से धनतेरस
के दिन धनवंतरी के साथ यमपूजन की प्रथा भी चालू हुई।
धनतेरस के दिन नया बर्तन खरीदने की लोक मान्यता भी जुड़ी है और धनतेरस के
दिन लोग बाजारों से नया बर्तन खरीदते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान
धनवंतरी कलश लेकर प्रकट हुए थे और हाथ में कलश होने के कारण नया बर्तन
खरीदने की परम्परा चालू हुई। परन्तु कुछ पंडितों का कहना है कि एक सिर्फ
लोकमान्यता है पुराणों में नया बर्तन खरीदने से संबंधित कोई भी प्रसंग नहीं
मिलता है। भगवान धनवंतरी के नाम के आगे धन लगा होने से यह परम्परा चली
होगी। इस दिन शंख व आयुर्वेद के ग्रंथों के पूजन का भी महत्व माना गया है।
श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’