द्वी रास्ट्र की अवधारणा पर भारत का पार्टीशन हुआ ..यानी उस समय मोहम्मद
अली जिन्ना और उनके समर्थको को ये लगा की उनकी भारत की राजनीती में और
कांग्रेस में अनदेखी की जारी है ,,उनका प्रतिनिधित्व उनकी जनसख्या के
अनुपात में नहीं हो पा रहा है ..भारत का मुसलमान अपनी पहचान खो रहा है .
और जिन्ना ने पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा जिसका सीधा अर्थ था की वो एक
इस्लामिक रास्ट्र चाहते हैं जिसमे इस्लामिक सिद्दांतों के अनुसार देश को
चलाया जा सके ..ये आज तक भी खुल कर सामने नहीं आया है की जिन्ना जेसे
बुद्दिजीवी और धर्मनिरपेक्ष इन्सान के मन में पाकिस्तान के निर्माण का
ख्याल क्यों कर आया में मोहम्मद अली जिन्नाह का एक प्रश्न आप मित्रों के
साथ बांटना चाहता हूँ . (सन 1935 में जिन्नाह उदयपुर यानी मेरे शहर में आये
थे ..वे पेशे से वकील थे और वे उदयपुर के ऋषभदेव मंदिर पर आदिवासियों और
जेन संप्र्द्य के बीच मंदिर पर कब्जे को लेकर विवद चल रहा था ..इस सिलसिले
में वे आये ..वे उदयपुर के सराफा बाज़ार में पहुंचे वे असल में वहां एक जेन
मंदिर की प्रतिमा देखना चाहते थे जिसको छवि ऋषभदेव मंदिर में स्थापित
मूर्ति जेसी थी ..पर वे मुस्लमान थे इसलिए जेन समाज ने उनके मंदिर के भीतर
जाने पर आप्पति जताई ..आपको हेरत होगी ये जान कर जिन्नाह ने जेन समाज की इस
बात का कतई बुरा नहीं मना और कहा की उनकी भावना का आदर करते हैं .,.और वे
मंदिर के भीतर नहीं गए) ,,,..कुछ लोग नेहरु जी की प्रथम भारत के
प्रधानमंत्री बने की लालसा को बताते है ..खेर .भारत का बंटवारा हुआ ..और एक
इस्लामिक देश पाकिस्तान के रूप में दुनिया के नक़्शे में सामने आया ..जिसका
एक भाग पूर्वी पाकिस्तान के रूप में था जो आज बंगलादेश है ..
अब मुसलमानों को पाकिस्तान जाना था और हिन्दुओं को भारत आना था ..ये घर
छुटने की नाराजगी ..भयानक दंगो के रूप में सामने आई ..अब इस घटना में पेच
ये फसा की ..बंटवारा होने के बावजूद भी केवल उत्तर भारत के मुस्लमान
पाकिस्तान गए ,,और अधिसंख्य मुस्लमान यहीं रह गए ,तो इसी तरह कई हिन्दू
पकिस्तान से यहाँ नहीं आये ..तो जिस अवधारणा के आधार पर बंटवारा हुआ वो
सैधांतिक तौर पर गलत लफ्फाजी और बुनियादी तौर पर गलत साबित हुआ ..यानी इस
बंटवारे में मोटे तौर पर देखा जाए तो तात्कालिक शाशन करने की लालसा ..जेसे
छोटा भाई बड़े भाई से हिस्सा मांग ले केवल इसलिए क्योंकि वो अपने परिवार के
साथ अपनी मन मर्जी से अलग रहना चाहता है ..क्योंकि अगर धार्मिक आधार पर
बंटवारा होता तो ..शायद एक भी हिन्दू को पाकिस्तान में नहीं रखना था और
भारत में एक भी मुसलमान को ..पर ऐसा नहीं हो सका .कोई भी हिन्दू या
मुस्लमान अपना घर छोड़ कर नहीं जाना चाहता था ..पर राज नेताओं के आपसे
क्लेश और झगड़े ने .इसे अंजाम दिया ..जिसका भुगतान दोनों देश की जनता आज तक
कर रही है ,,, मजेदार बात ये है पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगला भाषी और
संस्कृति में रचे बसे बंगाली मुसलमान पाकिस्तान के साथ रहने को बिलकुल भी
तेयार नहीं नहीं हुए ,,और बंगला देश अस्तित्व में आया ..जबकि वे खुद
मुस्लमान थे पर उनको अपने धर्म से ज्यादा भाषा और संस्कृति ज्यादा प्रिय थी
..इस उदहारण से ये स्थापित होता है की ..धर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण भाषा और
संस्कृति है ..जो आज भी पाकिस्तान और भारत की एक जेसी है ,,सिवाय .घडी में
आधे घंटे के अंतर के सिवा ,,सब एक जेसा है ,कश्मीर के मसले को बिखेर कर रख
दिया ..कश्मीरियत एक बड़ी संस्कृति है जिसे कोई समझने को तेयार नहीं ..और
आज कश्मीर को अलग दृष्टी से देखा जा रहा है ..ये कमजोर इच्चाशक्ति और
निक्कमे डरपोक शाशकों के कारण इस दशा में पहुंचा है ..कश्मीरियत एक वृहद
व्यापक बेहतरीन भाई चारे वाले संस्कृति है ..जिसमे मुस्लमान हिन्दू बौध और
सिक्ख धर्मों का समावेश है ..जो आज इस्लामिक आतंकवाद से पहचाना जा रहा है
..बड़ा ही दुखदाई है ..
मैं भाषा और संस्कृति को धर्म से उपर इसलिए मानता हूँ क्योंकि धर्म की
उत्पति या यूँ कहें धर्म का सृजन ..स्वार्थ निहित और मानव द्वारा मानव को
नियंत्रित करने के लिए किया गया ,,
धर्म के आने से पहले भी भाषा थी ..रिवाज थे ,,संस्कृति थी .बोलियाँ थी
..सामाजिक सम्बन्ध थे ,,शाशन व्यवस्था थी .बाज़ार व्यवस्था थी . इस प्रकार
धर्म के आने से पहले भी सारी व्यवस्था निर्बाध रूप से चलती रही थी ..हमारे
पूर्वजों का सृस्ती को पूजने और आचार विचार और व्यवहार करने के अपने तरीके
थे ..सामन्ती और दास व्यवस्था में धर्म को कठोर और अनिवार्य रूप से लागू
किया गया .