लेख :- रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ावाला''
इस समय हर कोई किसी न किसी के लिए कुछ न कुछ मांग रहा है। देश के पूर्व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिलवाने के लिए प्रतिपक्ष की
नेता सुभषा स्वराज को टिवट्र का सहारा लेना पड़ रहा है। सुषमा को
धर्मेन्द्र को भी भारत सरकार से पुरूस्कार - सम्मान की चाह है। मुझे एक बात
समझ में नहीं आ रही है कि भारत रत्न किसे मिलना चाहिए अटल बिहारी वाजपेयी
या ज्योति बाबू बसु या फिर किक्रेट के भगवान सचिन को.....? मुझे यह समझ में
नहीं आ रहा है कि भारत रत्न जिसको अभी तक मिला है या जिनको नहीं मिला है
क्या वे भारत रत्न मिले भी भारत रत्न नहीं कहलाये जा सकते है। भारत रत्न को
भारतीय राजनीति ने एक प्रकार से प्रायवेट लिमीटेड कंपनी बना लिया है। भारत
रत्न या पदम श्री का तमगा मिलने से कोई व्यक्ति महान हो जायेगा। यदि यह सोच
है तो इसे बदलना होगा। भारत का रत्न वह है जो कि बिना किसी चाहत के देश के
लिए मर मिट जाता है। ऐसे में क्या रानी लक्ष्मी बाई को अग्रेंजो से पंगा
लेने से पहले भारत रत्न पाने की शर्तो को रखना चाहिये था कि उसे भारत रत्न
मिलेगा तभी वह अग्रेंजो से लड़ेगी। मैं उन लोगो से सवाल पुछना चाहता हँू कि
वाजपेसी जी का पूरा राजनैतिक जीवन का योगदान वजी क्या एक मात्र भारत रत्न
के बराबर है। सम्मान और भीख मांगने से मिलती है तो मुझे किसी भी प्रकार का
भारत रत्न नहीं चाहिये.....? भारत रत्न पर क्या राजनैतिक दलो के नेताओ या
खेल प्रतिभाओं का ही हक है......? पूरे देश को दो वक्त की रोटी के लिए अनाज
पैदा करने वाले उस किसान को भारत रत्न नहीं मिलना चाहिये.......? फिल्म
शोले में शराबी बने वीरू उर्फ धर्मेन्द्र को अपनी सेकण्ड वाइफ कहलाने वाली
बसंती उर्फ हेमामालिनी को कुत्तो के सामने मत नाचने की सलाह देने के लिए
पदम श्री या उसके जैसा कोई अन्य सम्मान मिलना चाहिये......? उसे सुषमा
स्वराज इसलिए सम्मान दिलवाना चाहती है ताकि उसकी सेकण्ड वाइफ भाजपा की
स्ट्रार प्रचारक होने के साथ - साथ पार्टी की ससंद सदस्य है....? उसे
सम्मान न मिलने का जितना दुख धर्मेन्द्र के परिवार के सदस्यो को नहीं हुआ
है उतना भाजपा की नेता प्रतिपक्ष को है। समझने लायक बात यह है कि कहीं
भाजपा में रहने के चलते पदम श्री या उसके समान कोई अन्य सम्मान न मिलने से
पापाजी कहीं काग्रेंस की ओर चले गये तो उनकी पार्टी का क्या होगा....? कहीं
सुषमा जी को यह चिंता तो नहीं सता रहीं कि पापा जी तथाकथित सनकी बेटा सन्नी
गदर की तरह कोई गदर न कर बैठे और गुस्से के मारे किसी का हेड़पम्प ना ऊखाड़
ले.......? धर्मेन्द्र जैसे सैकड़ो फिल्मी कलाकार ऐसे भी है जिन्हे आज तक
कोई सम्मान नहीं मिला लेकिन क्या उन्होने कभी इसके लिए कोई धरना - प्रदर्शन
या डिंमाड नोट सरकार तक भिजवाया है। मुझे आज भी याद है अभी कुछ दिन पहले की
एक घटना जो कि फिल्मी दुनिया के कड़वे सच को उजागर कर गई। शोले के एक अहम
किरदार निभाने वाले एक के हंगल को इलाज के पैसो के लिए तड़पना पड़ रहा है।
इस देश में ऐसे कई ए के हंगल मिल जायेगें जिन्हे सम्मान तो दूर इलाज के लिए
रूपैया और खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है। यदि उनके
लिए सुषमा स्वराज सम्मान तो दूर दो पैसो की मदद के लिए आगे आती तो समझ में
आता कि नेता प्रतिपक्ष को अपने पक्ष के अलावा दुसरे पक्ष का भी ख्याल है।
मैं मांग कर मिले सम्मान का घोर विरोधी हँू। हमारे बैतूल में ऐसे कई बैतूल
रत्न है जो कि धीरू शर्मा के पेपर में कभी समाचार या फोटो के रूप में छपे
बिना कई रत्नो को पा चुके है। बैतूल जिले में रहने वाले कई बैतूल के रत्नो
को उसकी गली का आवारा कुत्ता भी ढ़ंग से पहचानता नहीं होगा लेकिन इनके पास
देश - विदेश से मिले कथित मान एवं सम्मान पत्रो एवं पदको का भंडार है। अपने
नाम एवं पदको तथा सम्मान के लेटर पेड पर स्टेशन की नगर की शांती समिति के
सदस्य बनने की मांग अकसर पढऩे को मिली है। सम्मान के भूखे जयचंदो से राणा
प्रताप का चेतक अच्छा है क्योकि वह संकट के समय काम तो आया। सबसे बड़ा
सम्मान तो वह है जो आपका पड़ौसी आपको दे क्योकि यदि आपका पड़ौसी ही आपको
सम्मान नहीं देता है तो वह आपका पता पुछने वालो से अकसर कहता फिरेगा कौन है
...? इसका नाम तो पहली बार सुना है.....? भाई साहब मेहरबानी करके यहां नहीं
किसी दुसरी गली में देख लो शायद कोई इनका पता बता दे.....? गली और गांव में
सम्मान पाने का प्रयास करे तभी आपको प्रदेश एवं देश में कोई मान - सम्मान
देगा। जहां तक लोकप्रियता की या प्रसिद्धी की बात करे तो मिस्टर नटवर लाल
उर्फ मिथलेश कुमार श्रीवास्तव , डाकु मान सिंह - मलखान सिंह , दस्यु सुंदरी
फूलनदेवी को भी कोई न कोई रत्न मिलना चाहिये क्योकि इन लोगो के जीवन पर
फिल्मो से लेकर नाटक - कहानी - पुस्तके - उपान्यास तक लिखी जा चुकी है।
मेरा अपना यह मानना है कि किसी भी व्यक्ति की लोकप्रियता के चलते उसे कोई
भी रत्न देने की सिफारीश नहीं करना चाहिये , लेकिन हमारे देश में तो केवल
अपनो को ही उपकृत करने की परम्परा चल पड़ी है। ऐसा ऊपर ही नहीं बल्कि नीचे
स्तर पर भी होता है। अब यदि किसी सासंद के निज सहायक की श्रीमति जी को
राष्ट्रपति पुरूस्कार मिल जाता है तो किसी को भी आश्चर्यचकित नहीं होना
चाहिये। सासंद या विधायक का पीए यदि अपनी सर्विस कार्यकाल के दौरान कुछ
उपकृत होता है तो यह उसका नैतिक अधिकार है क्योकि वह हर उस राज का राजदार
होता है जो हमारे सासंद और विधायक महोदय जी को दागदार कर सकता है। मैने भी
27 सालो से पत्रकारिता के क्षेत्र में इतना सम्मान पाया कि मैं हैरान एवं
परेशान हो गया कोर्ट और कचहरी के चक्कर लगाते - लगाते। अभी हाल ही में मुझे
राज्य सुरक्षा कानून के तहत जिला बदर करने का सम्मान पत्र मिलने वाला है।
सच लिखने के इतने सारे मान - सम्मान के आगे भारत रत्न का कोई मूल्य नहीं
है। इसलिए मैं तो अपनी देश की सरकार से हाथ पैर जोड़ कर प्रार्थना करता हँू
कि यदि कोई मुझे भारत रत्न दिलवाने के लिए यदि सरकार गिराने की धमकी भी दे
तो सरकार गिरा देना लेकिन मुझे मेहरबानी करके भारत रत्न मत देना। कलम के
सिपाही को या इमानदार व्यक्ति को पुलिस - थाना - कोर्ट - कचहरी - जेल -
जिला बदर से बउ़ा कोई सम्मान नहीं होता। रामायण के वाल्मिकी यदि डाकु से
महात्मा बन सकते है तो हमें समाज सुधारक से समाज के सबसे बड़े खतरे से बड़ा
कोई और दुसरा सम्मान तो मिलने से नहीं रहा। मान - सम्मान पाने की चाहत हर
किसी को रहता है। इसलिए सम्मान के लिए तरसना और किसी प्रकार का दबाव बनाना
नहीं चाहिये। मैं भीख में मांगे गये मान और उधार में मिले सम्मान से किसी
को कोई बड़ा भला नही होने से रहा।
सरकारी पटटे पर मिली जमीनो की खरीदी - बिक्री का गोरखधंधा
दलितो एवं पिछड़े वर्गो को दी गई कृषि योग्य भूमि पर भूमाफिया की नज़र
बैतूल: जिले में कांग्रेस शासन काल में बीस सूत्रिय अभियान के तहत बाटी गई
भूमिहीन दलित - आदिवासी -पिछड़े वर्गो को बाटी गई नि:शुल्क भूमि को अब
भूस्वामी पुस्तिका मिलने के बाद कौडिय़ो के दाम पर खरीदने का गोरखधंधा बड़े
पैमाने पर चल रहा है। बैतूल जिला मुख्यालय से लगे बहुचर्चित सेहरा ग्राम
में चार ऐसे मामले प्रकाश में आये है। इन सभी मामलो में गांव के सम्पन्न
किसानो द्वारा तहसील कार्यालय बैतूल में पदस्थ तहसीलदार के रीडर के संरक्षण
में चल रहे गोरखधंधे का हाल ही में खुलासा भी हुआ लेकिन पूरा मामला ठंडे
बस्ते में पड़ गया। पीपली लाइव को लेकर सुर्खियो में छाये रहे भविष्य वक्ता
कुंजीलाल के ग्राम सेहरा में फागु नामक दलित की व्यक्ति की तीन एकड़ जमीन
गांव के दबंग व्यक्ति राजेन्द्र उर्फ पप्पु जाति किराड़ एवं दो एकड़ जमीन
तारचंद किराड़ ने खरीद ली। फागु की तीन विवाहित बेटिया है जो अपने पिता की
इस प्रकार की जमीन खरीदी - बिक्री से अनजान है। फागु के दामाद राधेलाल
मिस्त्री का सीधा आरोप है कि उसके ससुर को शराब पिला कर उसके गांव के दबंग
लोगो द्वारा गांव की सीमा से लगी कृषि योग्य शासकीय पटट्े पर मिली जमीन के
दो हिस्से खरीद लिये है। इसी तरह का एक मामला प्रकाश में आया है जिसके
अनुसार गांव की मयादरी बेवा सुखराम उमग्र 78 साल निवासी इंदिरा आवास कालोली
ग्राम सेहरा का है। दलित बेवा मयादरी का आरोप है कि उसके जवान बेटे को भी
गांव के दबंग लोगो द्वारा गुमराह कर धोखे से बैतूल ले जाकर उसकी पांच एकड़
कृषि योग्य शासकीय पटटे पर मिली जमीन को गांव के दबंग व्यक्ति पंचम किराड़
द्वारा खरीद ली गई। भूमिहीन दलितो , आदिवासी ,पिछड़े वर्ग के लोगो को गांव
के आसपास पटटे पर दी गई भूमि को गांव के ही दबंग एवं सम्पन्न किसान द्वारा
खरीदने के बड़े गोरखधंधे में गांव कोटवार , पटवारी , तहसीलदार सहित कई
अधिकारियों एवं कर्मचारियो के शामिल होने का आरोप गांव के लोग लगाते है। इन
लोगो का आरोप है कि बैतूल के तहसीलदार श्री गजभिये स्वंय ग्राम सेहरा में
आकर सारी वस्तुस्थिति की जानकारी लेने के बाद चुप हो गये जिसके पीछे कारण
यह है कि उनके मुख्य लिपीक के कथित संरक्षण में चल रहा यह गोरखधंधा है।
गांव के एक अन्य दलीत किसान प्यारे एवं मिश्री आत्मज गेंदूलाल की भी शासकीय
भूमि पर गांव के ही दबंग लोगो द्वारा कब्जा करके रखा है। बाजीराव वल्द भूरा
की जमीन का भी मामला कुछ इस प्रकार का ही है। इधर शासकीय जमीन की कथित
रजिस्ट्री हो जाने एवं भूस्वामी पुस्तिका बन जाने के मामले में गांव के
पटवारी महेश छारले का कहना है कि उक्त गोरखधंधा उसकी पदस्थापना के पूर्व का
है जिसमें शामिल लोगो को जवाब देना चाहिये कि बिना शासन की अनुमति के उक्त
भूमि की कैसे भूस्वामी पुस्तिका बन गई। सारे मामले के एक बार फिर चर्चा में
आ जाने के बाद सेहरा सहित दो दर्जन से अधिक गांवो में शासकीय पटटे पर मिली
भूमि के खरीदी - बिक्री के कई मामले सामने आने की संभावना व्यक्त की जा रही
है। इधर बैतूल में उक्त प्रकरण को लेकर भूमाफिया भी प्रशासन पर दबाव बनाने
की स्थिति में है कि किसी भी तरह से मामले को दबाया जाये।
बेमौत मर रहे शिवराज मामा के नवजात भांजे एवं भांजियां
करोड़ो रूपए खर्च करने के बाद भी 520 बच्चो की अकाल मौतों पर उठा सवाल
बैतूल, रामकिशोर पंवार : मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में
करोड़ों रूपए खर्च करने के बाद भी महिला बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य
विभाग मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नवजात भांजे एवं भांजियों
की अकाल मौतो को नहीं रोक पा रहा है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के
सुराज में नवजात शिशुओं की मौत का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। आदिवासी
बाहुल्य बैतूल जिले में राज्य एवं केन्द्र सरकार की अनेक महत्वाकांक्षी
योजनाएं कागजी साबित हो रही है। सरकारी आकड़ो के अनुसार जिले में इस समय
शिशु मृत्यु दर काबू में नहीं आ रही है। बीते वर्ष जनवरी 2010 से 31
दिसम्बर 2010 में 520 बच्चे काल के गाल में समा गए। जिससे की शिशु मृत्यु
दर रोकने की तथाकथित कवायद और उस पर खर्च किए जाने वाले लंबे-चौड़े बजट की
पोल खुल गई। जिले में संस्थागत प्रसव के तहत पिछले एक साल के दौरान 23 हजार
206 बच्चों ने जन्म लिया था। वहीं 0 से एक साल तक के 520 बच्चों की विभिन्न
कारणों के चलते मौत हो चुकी है। जिले का शहरी एवं ग्रामीण स्वास्थ्य महकमा
इन मौतों के पीछे जो कारण गिना रहा है वे भी सदेंह के घेरे में है। शिशु
मृत्यु दर को रोकने के लिए शासन करोड़ों रूपए खर्च कर रहा है तो फिर इसमें
कमी क्यों नहीं आ रही है इस सवाल पर कोई भी जिम्मेदार अधिकारी संतोषप्रद
जवाब नहीं दे पा रहे है। शिशु मृत्यु दर रोकने के लिए संचालित योजनाओं की
मैदानी हकीकत को मृत्यु के यह आंकड़े आईना दिखाने का काम कर रहे हैं।
संबंधित विभागों के लाख दावों के बावजूद जो स्थिति सामने आ रही है। बैतूल
जिले में कई बार सरकारी योजनाओं के संचालन में कहीं न कहीं बढ़ी खामियां
सामने आई है। महिला बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य विभाग के पास लंबा-चौड़ा
अमला मौजूद है। बावजूद इसके अमले की कार्यप्रणाली लोगो की समझ से बाहर नजर
आ रही है। जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत 2052 आंगनबाडियां
के साथ 1621 डिपो होल्डर और स्वास्थ्य विभाग के 305 एएनएम, एमपीडब्ल्यू 160
कार्यरत है। इसके अलावा आशा कार्यकर्ता तथा यशोदा की संख्या अलग है। सबसे
शर्मसार कर देने वाली घटना भी इन विभागो की पोल खोल कर रख देती है। जिले
में प्रसुति जननी योजना के लिए कई वाहने किराये पर चलने के बाद भी समय पर
गर्भवति महिलायें समय पर जिला या विकासखण्ड प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र तक
नहीं पहुंच पाती है। खुले आसमान एवं पेड़ो के नीचे बीते वर्ष कई महिलाओं की
प्रसुति क्रिया हो चुकी है। वैसे देखा जाये तो जिले के ग्रामीण अचंलो में
कागजी शासकीय योजनाओं के प्रचार-प्रसार भी इन मौतों के लिए जवाबदेह है।
जिले में कार्यरत पंजीकृत स्वंयसेवी संस्था रोहिणी की संयोजक श्रीमति
रूक्मिणी कहती है कि शिशु मृत्यु के कई कारणो में कम वजन के बच्चे पैदा
होना। समय से पहले ही बच्चों का जन्म लेना। जन्म के बाद बच्चों में कुपोषण
, निमोनिया,डायरिया जैसी बीमारी का होना अपने आप में स्वास्थ एवं महिला बाल
विकास विभाग के कार्यक्रमो की सच्चई को उजागर करता है। जिला मुख्यालय पर
नवजात गहन शिशु चिकित्सा इकाई का अभी तक निर्माण नहीं करवाया जा सका है।
वैसे भी जिले में शिशु रोग विशेषज्ञ की कमी कई सालो से ज्यों की त्यों
सुरसा की तरह मुंह फाड़े नवजात शिशुओ को निगल रही है।