भ्रष्टाचार हमारे देश की सबसे बड़ी और विकट समस्या है । इसकी गति इतनी बेलगाम हो चुकी है कि आम जनता, अब इसे सुविधा शुल्क मान चुकी है । देश की आर्थिक स्थिति इन भ्रष्टाचारियों के चलते, शर्मंदगी की कगाड़ पर पहुँच गई है , लेकिन उन्हें शर्म नहीं आती । आये भी तो कैसे, इनकी आन-बान ,ठाठ-बाट पर कोई फ़र्क पड़े तब तो । हुकूमत इनके पास है, मजाल है कि कोई इनसे पूछ ले – छप्पड़ फ़ाड़कर इतने पैसे , आपके पास कहाँ से आये ? क्या आपके हाथ अलाउद्दीन का चिराग लगा है ? सामत आ जायगी उस पर, इसलिए जनता चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती है , जिसका नतीजा आज भ्रष्टाचार करोड़ों में नहीं, अरबों में होने लगी है । इन्हीं भ्रष्टाचारियों के चलते आज देश के एक हिस्से के दो फ़ीसदी लोगों को दो जून की रोटी तक उपलब्ध नहीं होती , कपड़े और मकान तो दूर की बात है । लोग खु्ले आकाश के नीचे ,अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं । अंग ढकने के नाम पर एक फ़टा अँगोछा होता है ; भला किसे पहनें और किसे निचोड़ें ? ये सभी समस्याएँ , सत्ता की कुर्सी पर आसीन , कुछ लोगों की भ्रष्ट नीतियों का फ़ल है । सरकारी सर्वे हर साल बताती है, इस साल सौ लाख टन अनाज मंडी में आयगा , जो कि बीते साल की तुलना में दोगुना होगा । लेकिन , ढाक के फ़िर वही तीन पात, हमारे देश की एक तिहाई अबादी का फ़िर वही जलाहार ! समझ में नहीं आता, जब इतना अनाज देश में उपलब्ध है, जिसे रखने के लिये सरकार गोदाम तक उपलब्ध नहीं करा सकती है, अनाज खुली आकाश के नीचे बरसात में सड़ता रहता है, बावजूद हमारे देश में भूखमरी आखिर क्यों है ? इसका एक बहुत बड़ा कारण है, देश के नेताओं की मंशा ठीक नहीं है; जिन्हें देश की चिंता करनी थी, उन्हें देश की चिंता नहीं है । वे तो अपनी आराम-तलबी की चिंता करते हैं कि कैसे हमारी सुख-सुविधा निर्विघ्न रहे और इसी में अपना दिन व्यतीत करते हैं । उन्हें अपनों से फ़ुर्सत कहाँ, जो देश के बारे में सोचें । देश के खजाने को अपना बपौती मानकर , जहरीले नाग की तरह अंतिम साँस तक कुंडली मारे बैठे रहते हैं और जब यह खजाना खुलता है, तो इनके खुद के लिए ,ये भ्रष्ट लोग देश को घुन की तरह खाये जा रहे हैं । जनता उन्हें चुनकर सत्ता की कुर्सी तक पहुँचाती है, मगर जनता को यह पूछने तक का अधिकार नहीं है कि कलतक आपके पास कुछ नहीं था । मेरी तरह पेपर बेचकर, खोनचों में चना बेचकर जीविका चलाते थे । ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि आप, पाँच साल में करोड़पति बन गये और हम जहाँ थे, वहीं रह गये । भ्रष्टाचार का यह रोग, हमारे देश के लिये घातक बनता जा रहा है । इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है, सरकार द्वारा चलाई गई अनेकों योजनाएँ लाभ लक्षित समूह तक पहुँचने के पहले ही दम तोड़ देती है । मगर कागजी घोड़े ठीक-ठाक रखे जाते हैं ।
आज सूचना के अधिकार का कानून बनने के बाद कुछ संवेदनशील लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े हुए हैं । लेकिन भ्रष्टाचार, जितना भयंकर रूप ले चुका है, उसके सामने, ये कुछ लोग नगण्य हैं, फ़िर भी थोड़ी सुधार की झलक, वो भी कहीं-कहीं दीखती तो है । लेकिन, इसे मिटाने की पहल कम है, क्योंकि जिन लोगों पर भ्रष्टाचार मिटाने का जिम्मा है, उनकी इच्छा -शक्ति संदेह के घेरे
में है । इसलिये इस भ्रष्टाचार को जड़-मूल सहित उखाड़ फ़ेंकना असंभव तो नहीं , मुश्किल अवश्य है । जहाँ समाज ऊपर से नीचे तक भ्रष्टता के कीचड़ में डूबा हुआ है; इसका उन्मूलन कहाँ से आरम्भ किया
जाय ? भारत के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । यह भ्रष्टाचार का पेड़, अब तो इतना विशाल रूप ले लिया, जिसकी जड़ें , देश की सीमा तक को पार कर गया है । ऐसे भी , कोई भी बीज, एक-दो वर्षों में विशाल वृक्ष का आकार ग्रहण नहीं करता । इसके लिए समय लगता है, यह भ्रष्टाचार भी वर्षों की कुसंस्कृति और सत्ताधारियों की राजनीति द्वारा बोये बीज का वृक्ष है ।
भारत की जनता को आजादी मिली , देश को नया संविधान मिला, लेकिन खजाने की कुंजी , उन भ्रष्टाचारियों के हाथों लगी, जो अभी भी बदल-बदलकर, खजाने पर अपना आधिपत्य जमाये बैठे हैं । जनता, पहले भी कंगाल थी और आज भी उसकी दशा-दिशा में कोई फ़र्क नहीं पड़ा । अगर कुछ अंतर आया है, तो वह है यहाँ की जनता, पहले गोरों की गुलाम थी और अब अपनों की । इस आजादी का, असली हकदार, जिसने अपने पिता- भाई, पति को खोया; जिस परिवार ने अपने घर के मुखिया को भारत माँ की आजादी की बलि चढ़ा दी, उसे क्या मिला, बस, सरकारी बेरुखी और आँसू ।
भ्रष्टाचार का घिनौना रूप, किसी एक डिपार्टमेन्ट में नहीं है, इसके विभिन्न रूप हैं । वंशवाद, हफ़्ता वसूली, ब्लैकमेल, टैक्स चोरी, झूठी गवाही , झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, सही उत्तर न देने पर भी पास मार्क्स देना और उसके लिये घूस लेना, संसद में पैसे लेकर प्रश्न पूछना, चुनाव के समय, वोट के लिए वोटरों में पैसे बाँटना, विभिन्न सरकारी- बेसरकारी पुरस्कारों के लिए मोटी रकम लेकर चयन करना आदि, सब भ्रष्टाचार ही तो है । वरुण प्रताप सिंह जी ने लिखा है— ’भारत में भ्रष्टाचार क्यों, इसका जवाब, सिंगापुर में छिपा हुआ है । उनके अनुसार – दुनिया के १७८ देशों में सबसे कम भ्रष्टाचार, डेनमार्क, न्यूजीलैंड और सिंगापुर में है ।’ ट्रान्सपैरेन्सी इन्टरनेशनल की तरफ़ से जारी २०१० करप्सन परसेप्सन इन्डेक्स ( पी० सी० आई० ) के मुताबिक, ये तीनों देश ९.३ अंकों के साथ संयुक्त रूप से शीर्ष पर हैं । इसका ठीक उलट है, अफ़्रीकी देश , सोमालिया ,जो सबसे अधिक भ्रष्ट है । भारत में भ्रष्टाचार के विशाल स्वरूप का कारण है, राजनीतिक अस्थिरता है । सिंगापुर में १९५३ से एक ही पार्टी शासन में है, जो कि आजादी के पहले से ही काबिज है । उनके अनुसार, जब तक स्थिर सरकार नहीं होगी, आर्थिक तरक्की के रास्ते में , राजनीतिक अस्थिरता रोड़ा बनी रहेगी । बावजूद , कुछ लोगों का मानना है कि चट्टान की तरह किसी एक पार्टी के सत्ता में रहने के कारण , उसके भ्रष्टाचार को उजागर करना मुश्किल होगा , इसलिए राजनीति में फ़ेरबदल बहुत जरूरी है ।
हमारे देश में भ्रष्टाचार के लिए कड़े कानून का न होना भी एक बड़ा कारण है । हत्या, नशीली दवाओं का कारोबार, अवैध हथियार रखने जैसे जघन्य अपराध करने के बावजूद , ये लोग बेल पर छूट जाते हैं या फ़िर, कुछ समय जेल में रहकर बाहर निकल आते हैं । बाहर आकर, फ़िर से वे उसी धंधे में संलग्न हो जाते हैं ; क्योंकि उन्हें मालूम है, यहाँ जिसके पास घूस देने के पैसे हैं, उन्हें डर किस बात का, ऊपर से नीचे तक ,सबों को खरीद लूँगा । कानून अपनी जगह, धंधा अपनी जगह;
लेकिन सिंगापुर में १९९९ से २००४ के बीच वरुण प्रताप सिंह जी के अनुसार , ४०० सौ लोगों को फ़ांसी दी गई । इससे दूसरे लोगों को , ऐसा धंधा करने के पहले सौ बार सोचना पड़ता है । इस प्रकार क्राइम से लेकर घूसखोरी तक में अपने आप कमी आ जायगी ।
हमारे देश में सरकारी योजनाओं को जहाँ पहुँचना चाहिये, उसके पहले , वहाँ भ्रष्टाचार पहुँच जाता है; चाहे वह इन्दिरा गांधी आवास योजना हो, महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना हो ; सब में भ्रष्टाचारियों का बोलबाला है । ज्यादा दिन नहीं, बस कुछ महीने बीते हैं; दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हुए भ्रष्टाचार को ही लीजिये, देश को इन भ्रष्टाचारियों ने लगभग २ लाख करोड़ का चूना लगा दिया । इसका दु:परिणाम हम आम जनता , महंगाई के रूप में भुगत रहे हैं ।
हम भारतवासियों के लिए खुशी की बात आज इतनी सी है, किस प्रकार भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए श्री अन्ना हजारे जी ने जो मुहीम चलाई, उस आंदोलन से जुटकर लगभग भारत की ९० % जनता ने अपनी भागीदारी निभाई । इससे पता चलता है, भ्रष्टाचार को लेकर जनता में कितना आक्रोश है । इस आन्दोलन को मीडिया से भी जबर्दस्त समर्थन मिला । इस आन्दोलन का एक पहलू यह भी था, उपहारों के रूप में आने वाले पैसे को भी, रिस्वत के दर्जे में रखना होगा , तभी अधिकारी , नेता और आफ़िसवीयरों पर नकेल कसा जा सकता है । यह भ्रष्टाचार , महंगाई के रूप में आम आदमी के पेट पर लात मारने का भी काम करती है । इतना ही नहीं, देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है । इससे आतंकवाद , अराजकता व जंगलराज का निर्माण होता है और यही भ्रष्टता, निकम्मी और अयोग्य सरकार को बचाये रखने में, पीलर का काम करती है । पिछले साल देश के लगभग सभी विपक्ष पार्टियों ने करप्सन को लेकर, देशव्यापी हड़ताल बुलाई । जब कि इन पार्टियों में भी एक से एक भ्रष्ट लोग बैठे हुए हैं , बावजूद मेरी कमीज तुमसे ज्यादा उजली बताने में लगे रहते हैं । कुछ दिनों पहले तक तो लोग यही कहा करते थे – ’खुदा बचाए’ इन भ्रष्टाचारियों से । लेकिन अब विश्वास और आस्था, अन्ना के गाँधीवादी नीतियों से इतनी सुदृढ़ हो रही है कि, अब लोग कहते हैं, अन्ना ही बचायगा इन भ्रष्टाचारियों से ।
जयहिन्द !