भारतीय अन्तरिक्ष जगत में ‘जीसैट-8श् का सफल प्रेक्षपण


डाॅ0 मनोज मिश्र

यह वर्ष भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष इस संगठन ने कुछ उच्चस्तरीय सफलतायें अपने खाते में दर्ज की है। पिछले वर्ष जी0एस0एल0वी0 डी-3 तथा जी0एस0एल0वी एफ-06 की असफलताओं के बाद से कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाॅ हासिल करना जरूरी था। अभी कुछ दिनों पूर्व ही प्रक्ष्ेापण यान पी0एस0एलवी0 सी-16 द्वारा दूर सम्वेंदी उपग्रह ‘रिसोर्ससेट-2’ के सफल प्रक्षेपण से इसरों के आत्म विश्वास में वृद्धि हुई है। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इसी क्रम में अल्प अवधि में ही तीन महत्वपूर्ण उपलब्धियाॅ हासिल की है जिनमें अभी हाल ही में प्रक्षेपित दूर सम्वेदी उपग्रह ‘रिसोर्ससेट-2’ के द्वारा उच्चस्तरीय चित्रों का भेजा जाना महत्वपूर्ण है, वैसे भी भारत दूर सम्वेदन के क्षेत्र में अपनी उच्चस्तरीय क्षमता के लिए विश्व विख्यात है। ‘इसरो’ ने भारत के सबसे बड़े सुपर कम्प्यूटर का निर्माण कर अपनी विविधता पूर्ण क्षमताओं का प्रदर्शन किया हैै। ‘जी सैट-8’ का सफल प्रक्षेपण देश की संचार प्रणाली एवं डी.टी.एच. सेवाओ के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। यह उपलब्धि इसलिए महत्वपूर्ण है कि जी.एस.एल.वी डी-3 एवं जी.एस.एल.वी. एफ-06 के असफल परीक्षण के साथ ही ‘जीसैट’ श्रंखला के दो महत्वपूर्ण उपग्रह क्रमशः ‘जीसैट-4’ तथा ‘जीसैट-5पी’ के नष्ट होने के बाद ‘जी सैट-8’ का सफल प्रक्षेपण इस श्रृंखला के भविष्य में होने वाले अन्य प्रक्षेपणों के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने का कारक सिद्ध होगा।
भारत की ‘इनसैट’ श्रंृखला भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी उपग्रह श्रृंखला है। इसमें अबतक कुल 24 उपग्रह प्रक्षेपित किय गये है जिनमें अभी भी 9 उपग्रह कार्य कर रहे हैं। सन् 1983 में स्थापित इनसैट उपग्रहों की श्रृंखला का उपग्रह ‘इनसैट-1बी’ कामयाब उपग्रह था। उसके बाद अब ‘जीसैट-8’ के प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने इस श्रंृखला में एक महत्वपूर्ण कडी और जोड़ दी है। सन् 2001 में ‘जीसैट-1’ के प्रक्षेपण के साथ ही इस श्रृंखला के उपग्रहों के प्रक्ष्ेापण की शुरूआत हुई थी। इस ‘जीसैट-1’ ने डिजिटल आडियों ब्राडकास्ट, इन्टरनेट सेवाओं तथा डिजिटल टीवी संचरण के क्षेत्र में अपना योगदान देना शुरू किया। इनसैट और जीसैट उपग्रहों के प्रक्षेपण से दूर संचार सेवाये, टी.वी. ब्राडकास्टिंग, मौसम का पूनर्वानुमान, आपदा तथा खोज और बचाव कार्यक्रमों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
दक्षिण अमेरिका के फ्रेन्च गुयाना के कोरू अन्तरिक्ष एजेन्सी के ‘एरियन-5 वीए-202’ प्रेक्षेपण यान के द्वारा ‘जीसैट-8’ को भू-स्थानान्तरण कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इस अन्तरिक्ष एजेन्सी के द्वारा कुल 14 भारतीय उपग्रहों का प्रक्षेपण अब तक किया गया है। भू-स्थानान्तरण कक्षा में स्थापित होते समय धरती से इसकी कम से कम दूरी 258 किमी0 तथा अधिकतम दूरी 35,861 किमी0 थी। इस ‘जीसैट-8’ की कम से कम दूरी की कक्षा का उच्चीकरण 15,786 किमी. तथा झुकाव 2.5 डिग्री से कम करके 0.5 डिग्री कर दिया गया है। इस उपग्रह द्वारा अपनी कक्षा को पूरा करने की समयावधि 15 घण्टे 56 मिनट है। यह ‘जीसैट-8’ उपग्रह 3100 किग्रा0 का अब तक का सबसे भारी तथा लम्बा उपग्रह है। इस उपग्रह के सहयात्री के रूप में जापान निर्मित ताईवान और सिंगापुर का ‘एस0टी-2’ उग्रपह भी कक्षा में प्रक्षेपित किया गया है। इस उपग्रह की लागत ृ 250 करोड है तथा बीमा ृ 30 करोड़ है। इस उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए भारत को ृ 300 करोड़ एरियन अन्तरिक्ष एजेन्सी को भुगतान करना पड़ा है। इस उपग्रह प्रक्षेपण से भारतीय उप महाद्वीप की डी0टी0एच0 सेवाओं में वृद्धि होगी। एक बात जो खलने वाली है वह यह है कि प्रक्षेपित उपग्रह ‘जीसैट-8’ की बीमा सहत कुल निर्माण लागत ृ 280 करोड़ ही है जबकि उसकी प्रक्षेपण लागत उससे अधिक ृ 300 करोड़़ है। सन्तोष होता यदि हमारी प्रक्षेपण क्षमता और बेहतर होती तो प्रक्षेपण लागत ृ 300 करोड़ को बचाया जा सकता था। जी0एस0एल0वी0 यानों के असफल प्रक्षेपणों तथा जीसैट उपग्रहों के विनाश के कारण ‘इसरोे’ के आत्मविश्वास की कमी के चलते हमे यह धनराशि ृ 300 करोड़ खर्च करनी पड़ी।
भारत की बढ़ती आवश्यकताओं तथा दूर संचार सेवाओं और मनोरंजन क्षेत्र की व्यापकता के कारण हमें मजबूत इनसैट तथा जीसैट प्रणाली की आवश्कता है। जिस तरह दूर संचार और मनोरंजन के क्षेत्र में वृद्धि हो रही है। उस हिसाब से गुणवत्तापरक सेवाए देने के लिए और अधिक उपग्रह के प्रक्षेपणों की आवश्यकता भविष्य में पड़ेगी। ज्ञात हो कि दुनियाॅ के द्वारा प्रक्षेपित किये गये कुल उपग्रहों में से आधे से अधिक उपग्रह अकेले अमेरिका द्वारा प्रक्षेपित किये गये है। भारत द्वारा अब तक दूर संचार, दूर संवेदी तथा अन्तरिक्ष विज्ञान के कुल 55 उपग्रह प्रक्षेपित किये जा चुके हैं। अपना देश भी जिस तरह विकास कर रहा है उस हिसाब से बहुत ज्यादा उपग्रहों की आवश्यकता है। उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए उपग्रह यानों को विकास भी अन्तरिक्ष जगत के लिए अति आवश्यक है। भारत ने ध्रुवीय प्रक्षेपण यान (पी.एस.एल.वी.) के क्षेत्र मंे महारत हासिल कर ली है परन्तु भूस्थैतिकी प्रक्षेपण यान (जी.एस.एल.वी.) के क्षेत्र में अभी काफी काम बाकी है। क्रायोजनिक इन्जन के सफल प्रक्षेपण के बाद से जी.एस.एल.वी. मार्क-3 तक की यात्रा अच्छी रही है। इस ‘जीसैट-8’ के साथ 24 शक्तिशाली ट्रान्सपोंडर तथा दो चैनलों वाले जी.पी.एस. (गगन) के प्रक्षेपण से के0यू0 बैण्ड के कारण इनसैट श्रृंखला की क्षमता बढ़ेगी तथा ‘गगन’ जी.पी.एस. प्रणाली का सटीक गणना बढ़ायेगा। इन 24 शक्तिशाली ट्रान्सपोंडरों के साथ ही इस प्रणाली के कुल 175 ट्रान्सपोंडर देश की संचार और मनोरंजन सेवाओं के लिए उपलब्ध हो जायेगे, जिसके कारण गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी तथा देश के दूर-दराज क्षेत्रों में संचार माध्यमों की पहुॅच बढ़़ेगी। भारत जैसे विशाल तथा कम संसाधन के बावजूद विकास के लिए संघर्षरत देश को डी.टी.एच. सेवाओं के कार्यों से अनगिनत लाभ होगें।
‘इसरो’ के प्रवक्ता एस0सतीश के बयान से स्पष्ट दिखलाई पड़ता है कि ‘इसरो’ ‘इन्ट्रिक्स-देवास’ समझौते के विवाद के कारण अभी बहुत ज्यादा डरा हुआ है। सतीश के मुताबिक ‘जीसैट-8’ की मुख्य सेवायें डी.टी.एच. टी.वी. सेवाओं के लिए है, ‘इसरो’ बैण्डविड्थ को निजी आपरेटरों को नहीं बेचेगी तथा केवल सरकार द्वारा प्रायोजित दूरदर्शन ही इस पूरी बैण्डविद्थ का उपयोग करेगा, जिसके कारण इसकी पहुॅच देश के दूर दराज के क्षेत्रों तक हो जायेगी। सरकार द्वारा प्रयोजित दूरदर्शन के द्वारा बैण्डविद्थ के उपयोग पर शायद ही किसी को आपत्ति होगी परन्तु निजी आपरेटरों को पूरी तरह बाहर कर देना उचित नहीं दिखलाई पड़ता। एन्ट्रिस-देवास की डील में पार दर्शिता का अभाव देश के द्वारा महसूस किया गया था। अतः निजी आपरेटरों के साथ पारदर्शिता पूर्ण आर्थिक लेन देन की प्रणाली का होना अति आवश्यक है। ‘इसरो’ को भविष्य में वृहद आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए अपनी बैण्डविद्थ केा बढ़ाकर बेचना ही एक मात्र विकल्प होगा। अतः भविष्य के आर्थिक लेन देन के समझौते को पारदर्शी तरीके से सतर्कतापूर्वक करने होगें। केवल सरकार द्वारा मुहैया कराये गये आर्थिक संसाधनों से महात्वकांक्षी अन्तरिक्ष अभियानों की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
इन सब बातों के साथ-साथ यह भी सच है कि ‘इसरो’ का यह वर्ष बेहद व्यस्त और चुनौतीपूर्ण है। इस वर्ष लगभग 11 उपग्रह अन्तरिक्ष में छोड़ा जाना प्रस्तावित है। जिनमें जीसैट श्रंखला के ‘जीसैट-6’/‘इनसैट-4ई’, ‘जीसैट-7’/‘इनसैट-4एफ’, ‘जीसैट12’, ‘जीसैट-9’, ‘जीसैट-10’ तथा ‘जीसैट-11’ उपग्रह छोड़े जाने की कतार में है। भारत ने जीसैट श्रंृखला के ज्यदातर उपग्रह जी.एस.एल.वी. प्रक्षेपण यान से प्रक्षेपण की योजना बनाई है। इनमे से ‘जीसैट-12’ ध्रुवीय प्रक्षेपण यान (पी.एस.एल.वी.) से छोड़े जाने का प्रस्ताव है। इन उपग्रहों के अलावा ‘राइसैट-1’, ‘मेघा ट्रापिक’, ‘इनसेट-3डी’, ‘सरल’ तथा ‘एस्ट्रोसैट’ उपग्रह भी ‘इसरो’ द्वारा अन्तरिक्ष में भेजे जायेगें। अतः उपग्रह की विविधिता तथा संख्या की दृष्टि से भारत दिन प्रतिदिन सम्पन्न होता जायेगा। उपग्रहों की इस विविधता के कारण भारतीय अन्तरिक्ष जगत बेहद संभावनाओं का क्षेत्र बन जायेगा, जिसका देश को भविष्य में लाभ होगा।

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