झरोखा एक नए सूर्य के साथ - Pankaj Trivedi

मंदिर की ध्वजा, पर्वत का शिखर या पंचों में सम्माननीय कोई इंसान हमारी प्रगति का रोल मोडल हो, ऐसा हो सकता है | अरे भाई ! आजादी मिली है तो प्रगति करना हमारा अधिकार है | अब हम मुक्त हैं और उसका ज्ञान है हमें, इसलिए तो सबकी ऐसी-तैसी करते हैं | हमें ऐसे शिखर पर जाकर बैठना है, जहाँ हमारे आसपास का हर इंसान दौड़कर आए, जी-हूजूरी करे और हमारे सूक्ष्म अहंकार को संतोष दे ! आजादी मिलाने के बावजूद भी हमारे अहंकार को संतोष न मिले तो क्या करें, भाई ! हमें तो प्रगति ही करनी है न? लोग तो बेचारे बोलते रहेंगे |

प्रगति यानी क्या? मुझे एक कहानी याद आती है | खरगोश और कछुए के बीच दौड़ की स्पर्धा होती है | दोनों तय करते हैं कि यहाँ से किसी जगह पर दौड़कर पहुँचना है | जो पहले पहुंचेगा वह जीतेगा | खरगोश दौड़ता है, आगे जाने के बाद मुड़कर देखता है तो कछुआ काफी पीछे था | खरगोश को लगा कि कुछ देर आराम कर लूं | अगर कछुआ आगे निकल गया तो भी क्या? मैं तो कूदकर पहुँच जाउंगा | जीत तो मेरी ही होगी न ? प्रगति का एक नशा होता है | उसमें खरगोश की तरह अहंकार नहीं चलता मगर कछुए की तरह अटल चल चलानी चाहिए और दृढ़ निर्धार भी ! हम सब प्रगति के लिए हमेशा गतिशील रहते हैं | आरंभ में शूरवीर रहना अच्छा लगता है अथवा इंसान की पुरानी आदत है | प्रगति करना तो हमारे और समाज के लिए उपकारक है | मगर उसमें अध:पतन का रोग लग जाए, तब इंसान नहीं बच पाता ! अहंकार इंसान को नपुंसक बना देता है | नपुंसकता सिर्फ शारीरिक नहीं होती | वह निम्न प्रकार की मानसिकता के रूप में भी हो सकती है | आज का समाज वर्त्तमान दौर में उसी का भोग बन रहा है |

हम जिस क्षेत्र में कार्यरत हैं, उसी क्षेत्र में दूसरों के मुकाबले अव्वल नंबर पर रहना ही प्रगति है? उससे ज्यादा हमारा ज्ञान हो, मान-सम्मान हो, धन-दौलत हो और वह सब प्राप्त करने का सूक्ष्म अहंकार हो तो उन सब का समन्वय इंसानियत का हिस्सा है | जीवन में कुछ बातें होती हैं, जिन्हें सूक्ष्म अर्थों में समझाना होता है | उंके बारे में कोइ शब्द प्रयोग करने के बावजूद भी समझ में नहीं आते, या उस बार का मर्म काफी हद तक तेज (लाउड) हो जाता है | पुराने जमाने के लोगों को भी सूक्ष्मता, गर्भितता या इशारे से पता चला जाता था | उस वक्त शिक्षा की व्यापकता इतनी नहीं थी | वह सब अपने अंतर की सूझ से कार्य करते थे | सूक्ष्मता तो वहीं होगी, जहाँ आध्यात्मिकता हो | पुराने जमाने के इशारे और आज के जमाने के इशारे में भी ऐसा ही फर्क होता है |

उस जमाने में मँगनी के बाद भी वाग्दत्ता को नहीं मिल पाते थे | माता-पिता ही संबंध तय करते और जो नसीब में मिलें उसे निभाना पड़ता | उस वक्त अक्षर ज्ञान भले ही कम था, मगर गाँव में होती भवाई, देसी नौटंकी या धार्मिक कथाओं के द्वारा जीवन को सही अर्थों में जीने का मार्गदर्शन मिल जाता था | फिर भी ज्यादातर दांपत्य जीवन सफल होते और उसमें विकार की मात्रा आंशिक ही होती | रामायण की कथा में एक प्रसंग है | वनवास के दौरान भगवान श्रीराम और सीता माता रात के समय कुटिया में विश्राम करें, अनुज लक्ष्मण बाहर बैठकर चौकीदारी | इतनी सी बात में श्रीराम और सीता माता के अनिवार्य संबंध की बात गरिमापूर्ण ढंग से कथाकार टालते हैं न? उसके बाद ही लव-कुश का जन्म होता है | ऐसा गरिमापूर्ण जीवन हमारा होता है क्या? लक्षमणजी तो वनवास के दौरान उर्मिला को साथ भी नहीं ले गए थे | यह कोइ दो-चार दिन की बात नहीं थी, पूरे चौदह बरस के ब्रह्मचर्य की बात है | उसमें बड़े भाई के प्रति प्रेम-समर्पण की कथा है | अन्य अर्थ में देखें तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के निजी पलों के दौरान लक्ष्मणजी चौकीदारी करें यह घटना ही कितनी फोरवर्ड है? हालाँकि उनकी चौकीदारी तो राक्षसों से बचने के लिएँ होती थी |

मान लें कि हमने प्रगति करके निश्चित ध्येय को प्राप्त कर लिया मगर उसके बाद क्या? पहले उस ध्येय को प्राप्त करने के लिए और बाद में उस ध्येय के साथ टिकने का संघर्ष | इंसान को जन्म से ही संघर्ष के साथ भिड़ना होता है | यह बात लोहे के भीम को धृतराष्ट्र बनाकर भेंटने की है | अगर मर गया तो काम से गया, वरना हम तो मजाक कर रहे थे, और क्या? प्रगति करना, ध्येय को प्राप्त करना तो इंसान का फर्ज है, कितना पवित्र फर्ज मताधिकार का है | मगर उस ध्येय को प्राप्त करने के बाद नई पीढी को कुछ भी करने की जरुरत न पड़े ऐसे स्वार्थी आशय से हम थोडा परिश्रम और करप्शन भी करते हैं | क्यूंकि हमें अपने ही फरजंद पर भरोसा नहीं रहा | इसलिए कड़ी मेहनत के बाद, प्रगति के शिखर पर पहुँचाने के बाद फिसलने का भय सर पर लटकती तलवार जैसा लगता है | हम अपने इतिहास को देखें तो कईं लोगों को ऐसी बेईज्जती मिली है | एक बात कहूं ? बच्चा पैदा हो, समझदार हो और अपने ही पैरों पर खड़ा हो यही स्वतंत्रता है | वह सिर्फ हमारा बच्चा नहीं है, समाज का अभिन्न हिस्सा भी है, स्वतंत्र व्यक्ति है | हमारे देश में एस कठोर वास्तविकता को स्वीकार करना भी जरूरी है | संयुक्त परिवार में रहकर भी इंसान स्वतंत्र रह पाता है | बच्चे की प्रगति के लिए पवित्रता से सहायक बनाना चाहिए | उसे प्रगति का ध्येय दिखने के बाद मुक्त कर देना चाहिए | आखिर तो उन्हें ही अपनी काबलियत सिद्ध करनी होती है | उसमें ही उनका सर्वांगीण विकास होगा |

हमारी क्षमता भी सूक्ष्म होनी चाहिए | उसी में ही हमारी प्रगति का गौरब है | प्रगति की महिमा मौन में है | एक इंसान ने पूरा जीवन संघर्ष कुया और अब भी उसमें से मुक्ति नहीं मिली | वही उअसकी नियति है | उसने प्रगति की, समाज में बड़ा नाम कमाया, समाज ने भी मान-सम्मान दिया, मकान और मोटर गाड़ियां दीं | उसके ऊपर धन की वर्षा कर दी | फिर भी भौतिक सुख के बीच में भी संघर्ष रहता ही है | उम्र के बढ़ने के साथ वृद्धत्व नहीं बल्कि बोधपा आया | वृद्धत्व में तो वसंत मौरे मगर वह भाग्य भी कहाँ? कुछ दोषों को बाद करके या प्रगति करने के लिए जरूरी बहेग चढ़कर भी ध्येय का शिखर तो हासिल कर लिया है | अब तो उस शिखर पर टिकने की माथापच्ची है | वह आदमी जिसका सहारा लेता है, उसी के द्वारा ही नीचे सरकता है | शिखर पर की एकलता इंसान की बुद्धि को भी भ्रष्ट कर देती है | प्रगति के लिए लयबद्ध गति चाहिए | एक बार जीवन की ले आत्मसात हो जाए फिर गति में से अपने आप प्र-गति होती है | ऐसी रिदमेटिक गति से हुई प्रगति और प्राप्त किया गया ध्येय का शिखर कंचनजंघा के सौंदर्य या हिमालय की तरह अडिग व्यक्तित्व दे सकें | कुदरत के अस्तित्व को नकारने के बदले उसे सहजता से स्वीकारना ही प्रगति है| सभानता के बीच अभान रहकर सत्कार्य के मार्ग पर कछुए जैसी अटल गति से चलना ही हितकारी है | इंसान का स्वभाव तो चंचल है | उसका अहंकार सूक्ष्मता से परे है | स्वकेंद्री इंसान किसी और को सहन नहीं कर पाता, इसलिए तो वह सर्वांगीण नहीं होता ! जगत में सभी चीजों का मूल्य है, सिर्फ इंसान का नहीं है |

कुछेक मूल्यवान इंसान अभी भी बच पाएं हैं, मगर उन्हें कोइ नहीं मानता या सुनता | जीवन के प्रत्येक क्षण पर, भौतिक चीजों के लिए टेस्ट बढ़ता रहता है और जीवन के नैतिक मूल्यों का पतन बढ़ता जाता है | उसे रोकने के लिएँ हमें युवा पीढी में विश्वास को बोना है, गति बढाकर उअनके साथ ताल मिलाना है, सिद्धातों का समर्पण करके, वास्तविक समय-स्थिति का स्वागत करना है | आओ, हम सब साथ मिलकर नए सिरे से चलना सीखें, एक नए सूर्य के साथ !

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