भारतीय शिक्षण संस्थाओं ने अपने-अपने उपग्रह ‘जुगनू’ तथा ‘एस०आर०एम०
सैट’ को अन्तरिक्ष में भेज कर सचमुच इतिहास रच दिया है। यह वह इतिहास होगा
जो देश के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान
केन्द्र (प्ैत्व्) द्वारा पी०एस०एल०वी०सी०-18 के सफल प्रक्षेपणों ने
अन्तरिक्ष के शोध को एक नया आयाम दिया। पी०एस०एल०वी प्रक्षेपण यान की लगातर
यह उन्नीसवीं सफलता पूर्वक उड़ान है। सन् 1993 से लेकर अब तक पी०एस०एल०वी
द्वारा कुल 20 प्रक्षेपण किये गये। पी०एस०एल०वी०सी०-18 प्रक्षेपण यान से
कुल चार सैटेलाइट अन्तरिक्ष की कक्षा में स्थापित किये गये जिनमें
भारत-फ्रांस के सहयोग से निर्मित ‘मेघा ट्रापिक’ लक्समबर्ग का ’बेसेलसैट’,
आई०आई०टी०, कानपुर का ‘जुगनू’ तथा चेन्नई के निजी विश्वविद्यालय एस०आर०एम०
का ‘एस०आर०एम० सैट’ है। अभी तक लगभग 50 सैटेलाइट इन प्रक्षेपण यानों से
प्रक्षेपित किये गये परन्तु इस मिशन की एक खास बात यह है इसमें दो सैटेलाइट
‘जुगनू’ तथा ‘एस०आर०एम० सैट’ भारतीय शिक्षण संस्थानों के छात्रों एवं
शिक्षकों के प्रयासों से तैयार किये गये है। भारतीय शैक्षणिक इतिहास का यह
गौरवशाली रूप है जब आई०आई०टी० कानपुर तथा एस०आर०एम० विश्वविद्यालय चेन्नई
ने ‘इसरो’ के निर्देशन में दो उपग्रह अन्तरिक्ष की कक्षा में प्रक्षेपित
करवाये और इतिहास रच दिया।
अब तक भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान केन्द्र (इसरो) के द्वारा अन्तरिक्ष में
भेजे गये ज्यादातर उपग्रह या तो इसरो के द्वारा निर्मित थे या फिर वे
विदेशी उपग्रह थे। यह विवाद का विषय हो सकता है कि देश की आई०आई०टी० का
स्तर कैसा है? परन्तु यह निर्विवाद सत्य है कि इनमें अभी भी देश की
सर्वश्रेष्ठ मेधा न केवल आ रहीं है बल्कि ‘जुगनू’ जैसा नेनोसैटेलाइट बनाकर
अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन भी कर रही है। पी०एस०एल०वी०सी-18 द्वारा
प्रक्षेपित प्रमुख 4 उपग्रहों मंे से तीन भारतीय है जबकि एक लक्समवर्ग का
है। भारत फ्रांस के सहयेाग से ृ 170 करोड़ की लागत का ‘मेघा ट्रापिक’ उपग्रह
मानसून, बाढ़, चक्रवात तथा सूखा का अध्ययन करेगा जबकि लक्समवर्ग का उपग्रह
‘वेसेल सैट’ समुद्र में जहाजों के समुद्री रास्तो की जानकरी देगा।
आई०आई०टी०, कानपुर का ‘जुगनू’ देश के किसी भी आई०आई०टी० द्वारा भेजा गया
पहला स्वनिर्मित उपग्रह है। वर्ष 2008 से शुरू होकर अब तक के प्रक्षेपण के
दौरान लगभग 50 छात्र का तथा 14 प्रोफेसरो का योगदान रहा है। इस पर कुल लागत
ृ 3 करोड़ आई है। यह उपग्रह दूर सम्बेदन उपग्रह है। जो पृथ्वी की तस्वीरे
भेजेगा जिससे अन्य जानकारियो के अलावा यह भूगर्भ जल स्रोतो की जानकारी भी
देगा। यह प्रायोगिक उपग्रह है जिसकी आयु लगभग एक वर्ष अनुमानित है। यह
उपग्रह कम वजन का तथा सस्ता है जिससे शोध के अन्य आयाम भी खुलेगे।
आई०आई०टी०, कानपुर द्वारा तैयार ‘जुगनू’ ने आई०आई०टी० के छात्रों के प्रति
सम्मान का भाव पैदा किया है। इस समय जब देश में आई०आई०टी० के स्तर पर बहस
चल रही हैं तब ‘जुगनू’ का प्रक्षेपण इस संस्थानों की शाख बढ़ाने का काम
करेगा।
इस समय जब निजी शिक्षण संस्थाओं और विश्वविद्यालयों की उपयोगिता पर प्रश्न
चिन्ह लगा हुआ है तब एक निजी विश्वविद्यालय एस०आर०एम०, चेन्नई द्वारा
‘एस०आर०एम० सैट’ का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण देश की शिक्षा प्रणाली के लिये
राहत देने वाला साबित हो सकता है। निजी विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह
प्रयास भारतीय उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित
होगा। चेन्नई के एस०आर०एम० विश्वविद्यालय ने दो वर्ष पूर्व एक नैनो
सैटेलाइट के डिजाइन तथा विकास का निर्णय लिया था जो परिणाम के तौर पर
‘एस०आर०एम० सैट’ के रूप में सामने आया। अपने विश्वविद्यालय के नाम को
अंतरिक्ष में ऊॅचा कर रहा यह उपग्रह ‘एस०आर०एम० सैट’ पर्यावरण में हानिकारक
ग्रीन हाउस गैसों, कार्बनडाइआक्साइड की उपस्थित का अध्ययन करेगा। विशुद्ध
पर्यावरणीय यह उपग्रह विश्वविद्यालय के 50 छात्रों तथा शिक्षकों की अथक
मेहनत का परिणाम है। छात्रों ने कक्षाओं की समयावधि के अलावा देर रात तक
अतिरिक्त समय देकर इस उपग्रह के लिए काम किया है। कुल 10.4 किग्रा० के वजन
के इस उपग्रह की लागत बेहद कम लगभग ृ 1.5 करोड़ आई है। इस निजी
विश्वविद्यालय ने अन्तरिक्ष के क्षेत्र में अपना निजी उपग्रह ‘एस०आर०एम०
सैट’ भेजकर सचमुच भारतीय शिक्षा जगत में इतिहास लिख दिया है।
इन दोनों शिक्षण संस्थानांें के द्वारा डिजाइन तथा विकसित किये गये इन
उपग्रहों से उच्चस्तरीय शोध का रास्ता भी देश की तकनीकी तथा विश्वविद्यालयी
शिक्षा में खुलेगा। आई०आई०टी० की गुणवत्ता देश की अन्दर सैदव ही उच्च कोटि
की मानी गई है। अतः ‘जुगनू’ का विकास और प्रक्षेपण उसी गुणवत्ता का परिणाम
माना जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी निजी विश्वविद्यालय
द्वारा इस उच्चस्तरीय प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए। देश की
विश्वविद्यालयी शिक्षा में शोध का स्तर सदैव शक की नजरों से देखा गया है।
इस समय एक निजी विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह करिश्मा सचमुच उज्जवल
भविष्यि की एक तस्वीर प्रस्तुत करता है। इस प्रक्षेपण से देश के निजी
संस्थाओं केा एक सार्थक एवं नई राह मिलेगी जिस पर चलकर वे भारतीय तकनीकी
एवं उच्च शिक्षा को नया आयाम दे सकेंगे। निजी विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण
संस्थाओं को इससे प्रेरणा लेकर अपने यहाॅ उच्चस्तरीय सामयिक शोध को बढ़ावा
देने का हौसला मिलेगा। न केवल अन्तरिक्ष जगत में बल्कि बायोटेक, वैकल्पिक
ऊर्जा, क्लाउड कम्प्यूटिंग तथा कृषि में उच्चस्तरीय शोधों का काम भी इन
विश्वविद्यालयों को करना चाहिए। इक्कीसवीं सदीं में पर्यावरण, तकनीक, भोजन
तथा पानी की समस्या जैसे विषय विश्व के पटल पर चुनौती बनने वाले है। इस समय
इस तरह के प्रयास निश्चित तौर पर देश के भविष्य की उज्जवल तस्वीर हमारे
सामने प्रस्तुत करते हैं। यह विचारणीय विषय है कि आई०आई०टी० द्वारा
उच्चस्तरीय शोध की कल्पना हम करते हैं परन्तु एक निजी विश्वविद्यालय द्वारा
किया गया यह काम भारतीय शिक्षा व्यवस्था का पैमाना भी बनेगी। एस०आर०एम०
विश्वविद्यालय द्वारा प्रक्षेपित इस उपग्रह के बाद अन्य निजी
विश्वविद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण प्रतिस्पर्धा का माहौल भी निश्चित तौर
पर बनेगा, जिसका लाभ भारतीय शिक्षा व्यवस्था को मिलना तय है। एक और परिणाम
निकलना तय है कि उन शिक्षण संस्थानों को भविष्य खतरे में पडे़गा जिनकी
गुणवत्ता संदिग्ध है।