।। लोभ भ्रश्ट्राचार का जनक है ।।—-नन्दलाल भारती


लोभ आत्मपतन का आईना दिखता है,यह बात लोभी भी अच्छी तरह जानता है पर गौर नही करता क्योंकि लोभ का भूत उसे ऐसा पागल बना देता है कि वह किसी को नही बख्षता है । पागल ष्वान की तरह जो सामने पड़ा काट लिया। लोभी ऐसा काग होता है कि अपने खून अथवा खून से बड़े रिष्ते दोस्ती को नोंच-नोच कर गैंडेनुमा चमड़ी को संवारता रहता है। लोभ नरक का द्वारा खोलता है,इससे लोभी अनभिज्ञ नही होता पर उसका मानसिक सन्तुलन इतना बिगड़ चुका होता है कि वह लोभ से उपर नही उठ पाता। लोभ को मानसिक बीमारी की संज्ञा दी जा सकती है।इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के परिजनों का दायित्वबनता है कि वे ऐसे व्यक्ति का इलाज करवायें ।सम्भवतः परिजनों का ध्यान इस ओर नही जाता क्योंकि लोभी उनके धन-तन अथवा मान सम्मान को नीलाम नहीं करता।दूसरे षब्दों में कहे तो वह जो भी चोरी बेईमानी करता है अपने सगों को करोड़पति अरबपति बनाने के लिये ही तो करता है। दगेबाजी से लूटे धन से बनी रोटी खाकर परिजनों की भी खाल मोटी हो जाती है।वे जानकर भी अनभिज्ञ बने रहते है। इस कारण लोभी दगाबाज सनकी व्यक्ति धीरे-धीरे बड़े-बड़े भ्रश्ट्राचार करने लगता है। लोभ जब वृह दरूप ले लेता है तब इस बीमारी का षिकार व्यक्ति लाख चालाकियों के बाद भी कानून के हत्थे चढ़ जाता है। लाल घर में बैठे-बैठे रोटियां तोड़ने लगता है। इस बीमारी से ग्रसित कई बड़े लोग तिहाड़ जेल की हवा खा रहे है।ये लोग आमजनता से दगाबाजी करते-करते देष से दगाबाजी का खेल-खेलने लगे अन्ततः कानून के हाथ लम्बे होते है कहावत चरितार्थ हुई। ये दोगले किस्म के लोग वहां पहुंच गये जहां ऐसे मानसिक बीमार लोगों का थर्ड डिग्री के माध्यम से भी इलाज किया जाता है। इस अस्पताल को जेल कहना अनुचित नही है।ऐसे अस्पतालों में ही आदमखोरों का इलाज किया जा सकता है,जो वहषीपन के चलते आदमी के विष्वास को रौदकर धन-धर्म और आदमी के अंग तक के व्यापारी बन गया है। ऐसे लोग तो समाज में रहने लायक नही होते पर इस हैवानियत के लिये वे अकेले नही होते,उनके परिजन होते है क्योंकि वे लूट से आये पैसे के बारे में तनिक नही सोचते कि ये रकम आ कहां से कैसे । वे तो रकम देखकर खुष हो जाते है।इस तरह से लोभी को आश्रय परिजन ही देकर उसके पागलपन को मजबूत कर देते है,जिससे वहषी-लोभी व्यक्ति छोटी मोटी ठगी करते-करते नटवरलाल या ओसामबिन लादेन जैसो का जन्म हो जाता है। ऐसे लोग देष और दुनिया में भय ,आंतक फैलाकर अपनी धाक भी जमा लेते है परन्तु जब पुलिस के डण्डे पड़ते है तब पोल खुल जाती है । ऐसे ठग-प्रवृति के चोर गली के लोग चाहे वे सफेदपोष, सफेदकालर, व्यापरी साधु-सन्यासी अथवा किसी अन्य आवरण में ढके हो काली करतूतें जगजाहिर होते ही वही लोग जो बड़ी अदब से सलाम ठोंका करते थे ऐसे ठगों के मुंह पर थूकना भी तौहीनी समझते है।
दुर्भाग्य कहे या मानसिक बीमारी जिसकी वजह से मानवता की राह छोड़कर दानवता की राह पकड़ने वाला आदमी,आदमी के साथ छल कर बैठता है । धीरे-धीरे दगाबाज आदमी देष के साथ छल कर जाता है। चन्द सिक्कों के लिये वह देष की अस्मिता से सौदा कर बैठता है।वह एक राश्ट्र का नागरिक होने के नाते देष का सिपाही भी है। वह इस भावना को भूलकर स्वहित में गलत राह पकड़ लेता है। छोटी-मोटी रिष्वतखोरी-ठगी,इधर की उधर करते-करते धन का लोभी पद का अभिमानी अमानुश बन जाता है। गौर करें, एक सरकारी अधिकारी/कर्मचारी पर जिसे काम के बदल तनख्वाह मिलती है,पूरी जिन्दगी सुरक्षा भी परन्तु वही अधिकारी/कर्मचारी जनसेवा-राश्ट्र सेवा की कसम को भूल कर रिष्वतखोरी पर उतर आता है। बिना घुस लिये अर्जी आगे नही बढ़ाता। दूसरी तरफ चैराहे पर नजर टिकायें जहां से बड़े वाहनों का आना जाना है। चैराहे पर हर वाहन मंथर गति से आगे बढ़ता है। चालक अपनी बन्द मुट्ठी तैनात सिपाही के हाथ में खोलता है,सन्तोशजनक भेंट होने पर सिपाही मुस्कराता है और वाहन की गति तेज हो जाती है।वही दूसरी ओर अन्य वाहन आता है जो भेंट नही चढ़ाता उसके पीछे पुलिस वैन दौड़ पड़ती है जैसै कोई आतंकवादी हो जबकि आतंकवादी तो बिना रोकटोक के अपना काम कर ले रहे है। देखिये बम्बई के जूहू बीच पर कितना भारी भरकम जहाज खड़ा हो था वह भी लावारिस हालत में इस जहाज पर जल थल और वायु सेना की नजर नही पड़ी। वही दूसरी ओर ये रक्षक उन वाहनों पर बिना किसी षक के षक कर जीप दौड़ा कर आगे जाकर रोक लेते है। ढे़ेर सारे सवाल जबाव करती है । नियम तोड़ने की धमकी देकर चालान बनाने का डर दिखाकर वाहन चालक कोे बड़ी भेंट चढ़ाने को मजबूर कर देते है। ऐसे रक्षक देष की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करते,पराई मां बहनों के साथ बलात्कार षोशित पीड़ित आम हाषिये के आदमी पर जुल्म करने के मामले में भी पीछे नही है,हर सरकारी मोहकमें का हाल कुछ ऐसा ही हो गया है । कोई मुहिम चलती है तो राजनीति के अपराधिकरण की प्रवृति से फेल हो जाती है ।यकीनन राजनीति के पहलवान भी तो रिष्वतखोरी की सोने की ईंट पर अपनी कई पीढ़ियों के लिये महल खड़ा करने मेें जुटे हुए है।यह रिष्वतखोरी का रोग एकदम से तो नही फलाफूला है।इसकी षुरूआत माहौल से हुई है। इस लोभ रूपी बीमारी का इलाज षिषुकाल से प्रारम्भ हो जाना था । बच्चों को अच्छी-अच्छी नसीहते दी जाती,देषसेवा समाज सेवा के पाठ पढाये जाते,झूठ पाप है ठगी-धोखा महापाप है के बोध करवाया जाता ही नही वरन् उदाहरण बना जाता तो आज लोभ जिसकी उपज आज का विकराल भ्रश्ट्राचार है,का भयावह एवं घिनौना स्वरूप नजर नही आता। आज जिस भ्रश्ट्राचार की आग से देष और समाज झुलस रहा है। सब कसम वादे झूठे साबित हो रहे है। रिष्वत का भूत सिर चढ़कर नांच रहा है । आम जनता पीसी
जा रही है ।हजारों खरब रूपये विदेषी बैंक और विदेष को अमीर बना रहा है। स्वदेष को घुन की तरह चट कर रहे है,झूठे मक्कार दगाबाज,ठग किस्म के जन-देष सेवक और रक्षक।जनलोकपाल के रूप में मुहिम चली थी उसे भी राजनीति के खिलाड़ी लोभ को सर्वोपरि मानते हुए उसके स्वरूप् को विकलांग बनाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। काफी हद तक कामयाब भी हो चुके है जिससे आधुनिक लोकतन्त्र के उपर सामन्तवाद एवं राजषाही/तानाषही की काली छाया मड़राने लगी है । ठगी यहां तक पहुंच चुकी है कि विधान सभा तक में प्रष्न पूछने तक के लिये वसूली हुई है।
संसद में नोट के बोरे पहुंच रहे है,जनप्रतिनिधि खरीदे बेचे जा रहे है। हम किस युग में जी रहे है। बातें तो बहुत बड़ी बड़ी कर लेते हैं पर करनी में नही उतार रहे है। कथनी और करनी में बहुत ज्यादा अन्तर रखने लगे है। यही कृतित्व इंसानियत के प्रतिबिम्ब ग्रहण साबित होने लगा है । आदमी आदमी को षक की दृश्टि से देखने लगा है क्योंकि वह रिष्वत,ठगी,धोखा खा चुका है।बचकर चलाने को आतुर है पर जब पूरे कुयें में रिष्वत,ठगी,धोखा की भांग घुल चुकी हो तो कैसे बच सकता है। तन्त्र को भ्रश्ट बना दिया गया है सिर्फ स्वार्थ की असाध्य बन चुकी बीमारी की वजह से ।इस बीमारी का फैलाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है,दैहिक और दैविक तापा से लोभ की बीमारी कई गुना हानिकारक है।
आज देष में एडस् एवं अन्य जानलेवा बीमारियों का प्रकोप जारी है परन्तु स्वार्थ,लोभ की मीठी बीमारी हजार गुना खतरनाक साबित हो रही है। इस बीमारी ने देष और सभ्य मानव समाज की मर्यादा को हाषिये पर लाकर रख दिया है । लोभी व्यक्ति यह नही सोचता है कि वह कौन है किस जन्म के पुण्य से मानव तन पाया है। वह चिन्तनषील प्राणी होकर मानवता के खिलाफ काम कर रहा है,धोखा,ठगी रिष्वतखोरी,भ्रश्ट्राचार कर रहा है। यह तो मानसिक स्वस्थ व्यक्ति का काम नही हुआ, ,धोखा,ठगी रिष्वतखोरी,भ्रश्ट्राचार,उग्रवाद और आतंकवाद ये मानसिक बीमारी की श्रेणी में रखा जाना चाहिये और ऐसे मरीजों को चैराहे पर गोली मार देना चाहिये जिससे ये खतरनाक के फैलाव पर रोक लग सके । ये बीमारियां वास्तव में किसी न किसी लोभ की उपज है। विगत् दिनों की बात है विभागीय सीनियर अफसर श्री रामानन्द लठैत की कुछ कार्यालयीन कार्यक्रम की खरीदी विभाग के एक छोटे कर्मचारी ने बांस के कहने पर उन्नतीस सौ रूपये करवाकर पहंुचवा दिया। कार्यक्रम सफल रहा बांस ने कर्मचारी की प्रषंसा भी की और रूपये श्री रामानन्द लठैत के षीघ्र देने की बात भी दोहरायी। महीनों बाद छोटे कर्मचारी ने याद दिलाया तो सीनियर अफसर श्री रामानन्द लठैत ने कहा कैसा पैसा ? जबकि इस धोखबाज अफसर ने क्लेम भी कर दिया,यदि चोर गली के लोगों के हाथ खजाने की चाभी आ जाये तो क्या होगा,चमड़े के सिक्कों का प्रचलन बढ़ जायेगा।मुद्रा कोश का मुंह तुगलकी फरमान जारी करने वालों के घर में खुलेगा।आमआदमी कण्डे से आसू पोछेगा ये दरिन्दें अय्याषी करेगें आमआदमी के खून से होली खेलेंगे । कहा जाता है कि जो राजा प्रजा के विकास,सुख-दुख की फिक्र नही करता वह महापाप का भागी होता है। मेरा मानना है मुखिया चाहे दफतर का हो सभ्य मानव समाज का हो अथवा परिवार का हो यदि वह अपने अधीनस्थों के विकास में रोड़ा डालता है,गलत तरीके से काम करवाता है और खुद के लिये गलत तरीके से धन का पहाड़ जोड़ता है। खुद की उन्नति के लिये साम,दण्ड और भेद की नीति अपनाता है,उसे हैवान की संज्ञा देना उचित होगा और यदि स्वर्ग नरक है तो उसे नरक की प्रथम पंक्ति में जगह जरूर मिलेगी । विचारणीय प्रष्न है क्या एक मानसिक स्वस्थ व्यक्ति लोभी,घुसखोर,उग्रवादी अथवा आतंकवादी हो सकता है बिल्कुल नही । ऐसा तो हाषिये का आदमी भी नही कर सकता क्योंकि ईमान ही उसकी दौलत है परन्तु एक सम्पन्न और सीनियर अधिकारी
ऐसा करें तो क्या कहा जाना चाहिये। यही न कि वह विष्वास के लायक नही है,फरेबी है,दगाबाज,धोखेबाज है। दुर्भाग्यवष ऐसे दगाबाज ही फलफूल रहे है क्योंकि पूरा तन्त्र लोभ-भ्रश्ट्राचार की बीमारी से ग्रसित हो चुका है ।
मेरा अनुरोध देष-दुनिया के वैज्ञानिकों से है जिन्होंने भू्रण टेस्ट के माघ्यम से गर्भ में ही बालक- बालिका होने की पहचान करने का नुस्खा दुनिया को दे दिया है जिसकी वजह से बालिका भू्रण हत्या धड़ले से हो रही है जिसका ज्वलन्त उदाहरण है निरन्तर आधी आबादी में कमी तो क्या वैज्ञानिक /जीव वैज्ञानिक गर्भस्थ भू्रण के मानसिक अवस्था पर अध्ययन कर उसमें पनप रहे, असामाजिक विचारधाराओं पर अंकुष लगाकर समाजहित देषहित के लायक बनाया जा सके।साथ ही साल दो साल के बच्चों के लिये टीके का इजाद कर उनके मस्तिश्क में पनप रहे धोखा,ठगी रिष्वतखोरी,भ्रश्ट्राचार,उग्रवाद और आतंकवाद के सेल को खत्म किया जा सके जिस तरह से षारिरीक बीमारियों के रोगों के निवारण के लिये टीको का उपयोग किया जा रहा है।वर्तमान समय में ऐसे अनुसंधान और टीकों की अत्यन्त आवष्यकता है। देष-दुनिया में धोखा,ठगी रिष्वतखोरी,भ्रश्ट्राचार,उग्रवाद और आतंकवाद की महामारी का प्रकोप बढता जा रहा है । यह मान लेना चाहिये कि बचपन छोटे-मोटे लोभ के विचार भ्रश्ट्राचार,उग्रवाद और आतंकवाद के जनक होते है,इस विशय पर वैज्ञानिकों-जीव विज्ञानियों को सोचना होगा क्योंकि मानवहित में यह आवष्यक है और मानवता को बचाये रखने के लिये जरूरी भी । यदि गर्भस्थ अवस्था अथवा षिषु अवस्था में ऐसे टीके लगा दिये जायेगे तो हमारी दुनिया मानवतावादी,भय,उग्रवाद और आतंकवाद से मुक्त हो जायेगी।

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