शिक्षक की शैक्षिक-तकनीकि डर और सूचना-संपन्न समाज निर्माण

एक स्कूल में बच्चे के साथ जो महत्वपूर्ण घटक होते हैं उसे नजरअंदाज कर नहीं चल सकते। वे घटक हैं शिक्षक व शिक्षिका एवं शैक्षिक- तकनीक। स्कूल एवं काॅलेज के शिक्षक व शिक्षिका आध्ुनिक शिक्षा एवं सूचना तकनीक संसाध्नों के प्रयोग से गुरेज नहीं करते एवं तमाम अत्याध्ुनिक तकनीक का इस्तेमाल अपनी कक्षा में प्रभावशाली अध्गिम-प्रक्रिया;टीचिंग लर्निंग प्रोग्रामद्ध में विश्वास करते हों ऐसे स्कूल एवं काॅलेज में बच्चे की सर्वांगीण विकास को कोई भी नहीं रोक सकता। आज कोई भी क्षेत्रा ऐसा नहीं है जहां तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता। जहां भी अत्याध्ुनिक तकनीक का प्रयोग होता है वहां काम की गति, पारदर्शिता एवं आसानी से सूचना-पुनप्र्राप्ति प्रक्रिया संपन्न होती है। इसी तर्ज पर शिक्षा के क्षेत्रा रोज दिन नई-नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। न केवल स्कूल बल्कि काॅलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर भी शैक्षिक-तकनीक संसाध्नों के संजाल बिछाने पर प्रशासन एवं प्रबंध्न की ओर से जोर दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय स्तर पर सूचना- तकनीक तंत्रा को प्रबल बनाने पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। नई सूचना एवं शैक्षिक-तकनीक के इस्तेमाल का ही परिणाम है कि आज सुदूर गांव-देहात में रहने वाले छात्रा-छात्राएं बीए, एमए, एवं अन्य तकनीकि एवं व्यावसायिक कोर्स कर रोजगार भी प््रााप्त कर रहे हैं।
गौरतलब है कि आज भी गांव-कस्बे में स्कूल-काॅलेज जाती लड़कियों को कई तरह के व्यवधनों से गुजरना पड़ता है। ऐसे में यह शैक्षिक-तकनीक एवं पत्राचार पाठ्यक्रमों का ही चमत्कार है कि आज विभिन्न विश्वविद्यालय की ओर से चलाए जा रहे पत्राचार व आॅन लाईन कोर्स में आए दिन नामांकन की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर चलने वाली ;ओपन लर्निंगद्ध में दाखिला लेने वालों की संख्या आज 2 लाख से भी ज्यादा है। अगर स्कूल स्तर पर नजर डालें तो पाएंगे कि कंप्यूटर ने बच्चों में एक अलग ही किस्म का आत्म-विश्वास पैदा किया है।
कंप्यूटर के प्रयोग से जो डरते हैं उनके साथ तकनीक का डर स्कूल स्तर से होते हुए काॅलेज और निजी जिंदगी तक बतौर जारी रहता है। तकनीक का डर बच्चों में ही नहीं, बल्कि बड़ों में भी आसानी से देखी जा सकती है। एक बुजूर्ग के लिए मोबाईल का इस्तेमाल किसी जहमत से कम नहीं है। ऐसे जब उनके सामने नई पीढी तकनीक की बात करती है तो उन्हें इस तरह की बातें बेकार और नए जामने के चोलने लगते हैं। तकनीक टूल्स के इस्तेमाल के मामले में काॅलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर भी प्राध््यापकों में इस डर को आसानी से देखा जा सकता है। जिन लोगों ने आज तक तकनीक का प्रयोग ताउम्र नहीं किया, उन्हें आज के तेज बदलते ज्ञान के चरित्रा को पकड़ने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना ही पड़ता है। वह चाहे नई रिसर्च पत्रा-पत्रिकाएं हो या कोई निमंत्राण या विभागीय कार्य-विवरण इन सब से जुड़ने के लिए आज की शैक्षिक-तकनीक के इस्तेमाल से कोई बच नहीं सकता।
सूचना संपन्न समाज-निर्माण एक तरह से ऐसे समाज-निर्माण की प्रतिब(ता दुहराती है जिसमें सूचना, ज्ञान एवं शिक्षा आदि पूरी तरह से तकनीक व प्रौद्योगिकी आधरित होगी। एक छोटी-सी ख़बर ;सूचनाद्ध पलक झपकते ही करोड़ों-करोड़ मील दूर समाज तक पहुँच जाएगी। सूचना आधरित समाज वेफ लोग भी सूचना- तकनीक व प्रौद्योगिकी से लैस होंगे तभी यह सपना साकार होगा। इस काम को सही एवं ध्न, शक्ति एवं समय की हानि किए यदि कोई सार्थक योगदान दे साकता है तो वह शैक्षिक संस्थान एवं उनसे जुड़े शिक्षा-ज्ञान, सूचना उत्पादक की श्रेणी में आने वाले शिक्षक वर्ग को इस तकनीक के इस्तेमाल से परहेज नहीं करना होगा। मानव सभ्यता वेफ विकास पर एक विहंगम दृष्टि डालें तो पाते हैं कि सूचनाएँ, संदेश भावनाएँ, मूक, सांवेफतिक, ध्वनि आदि भाषिक अभिव्यक्तियों वेफ माध्यम से गुजरती हुई आज वाई-पफाई तकनीक तक पहुँच चुकी है। इस विकास यात्रा में निःसंदेह माध्यम के रूप बेशक बदले हैं। इतना ही नहीं बल्कि माध्यम पहले से ज्यादा सशक्त और तेश हुए हैं। मगर जो चीज नहीं बदली वह है संदेश ;मैसेजद्ध। संदेश वह वेफन्द्रीय विषय है जिसे विभिन्न माध्यमों, तकनीकों वेफ जरीए मानव, समाज एवं देश तक संप्रेषित किया जाता रहा है। पिछले दशक पर नशर डालें तो पाएंगे कि सूचना-युग का आरम्भ हो चुका था। इस युग की तमाम सामाजिक-संरचनाएँ कनेक्टिविटी और साॅफ्रटवेयर वेफ संजाल से बुनी गई है। हमें सूचना, ज्ञान-संपन्न समाज वेफ निर्माण में जो ख़ास ध्यान देने की बात है वह यही है कि तकनीकी व प्रौद्योगिकी विकास वेफ दौर में मानव प्रौद्योगिकी का एक औजार न बन बैठे। अच्छा हो कि प्रौद्योगिकी ही मानव का एक औजार बने। इस लिहाज से प्रौद्योगिकी वेफ मानवीय पहलू को उभारना नितांत जरूरी है।
सूचना संसाध्नों वेफ वंफध्े पर सवार हमारा समाज वास्तव में प्रकारांतर से ज्ञान आधरित समाज का शक्ल अख्तियार करता जा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने एक सभा में कहा था कि ज्ञानवान समाज विकसित समाजों का नेतृत्व करता है। लेकिन कोई यह वैफसे तय करे कि कौन-सा समाज, देश ज्ञान, सूचना-सृजन, प्रसारण में सक्षम हो चुका है। बहुत वाजिब सवाल उठाया गया कि वह कौन निर्णायक पैमाना होगा, कौन इसकी जांच करेगा। गौरतलब है कि समाज वेफ विकास वेफ मापदंड समय और व्यक्ति-समाज सापेक्ष रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें उन आधरभूत बिंदुओं पर नशर डालना होगा जो हमें सूचना-प्रौद्योगिकी से लैस समाज-निर्माण में ख़ासे मददगार साबित होगी। इस काम का खाका तैयार करने में जुटी ज्ञान आयोग के सुझावों को अमल में लाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीय समाज भी अन्य सूचना-संपन्न समाज का सामना कर सकता है।
सूचना, शिक्षा, प्रशिक्षण एवं तकनीक व प्रौद्योगिकी एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी को भी विलगा कर नहीं चला जा सकता। सूचना अपने आप में आंकड़ा, वुफछ तथ्य भर ही तो है। लेकिन वह जब तक सही समय पर, सही माध्यम से, सही व्यक्ति-समाज तक नहीं पहुँचता तब तक उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। इसलिए सूचना को विशेष शिक्षा-प्रशिक्षण का सहारा तो चाहिए ही। साथ ही सुप्रयुक्त माध्यम की भी जरूरत पड़ती है। आख़िर वह माध्यम उपयुक्त है या नहीं यह कौन तय करेगा। इसवेफ लिए प्रौद्योगिकीविद्ों की आवश्यकता होती है। साथ ही हमें प्रौद्योगिकी शिक्षा का सहारा लेना पड़ता है। दूसरे शब्दों, शिक्षा व सूचना-प्रौद्योगिकी को ज्यादा से ज्यादा जनोपयोगी बनने वेफ लिए खास किस्म की शिक्षा की आवश्यकता होती है। इसलिए भारत में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना की गई, ताकि इस विशिष्ट ज्ञान, ;तकनीकीद्ध की तालीम विशेष तरीवेफ से दी जाए। अगर हम 2009-10 वित्त वर्ष वेफ अंतरिम बजट पर नशर डालें तो वित्तमंत्राी ने अपने भाषण में ;बजटद्ध घोषणा की है कि इस वित्त वर्ष 2009-10 में 15 वेफन्द्रीय विश्वविद्यालयों एवं आईआईटी, आईआईएम संस्थानों की स्थापना की जाएगी। विश्वविद्यालयों, संस्थानों की कड़ी को मजबूती प्रदान करने वेफ लिए पूर्व की कड़ियों पर नशर डालना अप्रासंगिक नहीं होगा।
‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005’ मानती है कि सूचना प्रौद्योगिकी ;आईटीद्ध पाठ्यचर्या जिसमें सूचना और कम्प्यूटर युग वेफ औजारों का उपयोग शामिल है। कम्प्यूटर साईंस पाठ्यचर्या जिसमें से औजार रचे और गढ़े जाते हैं, इन दोनों वेफ बीच पफर्वफ करना जरूरी है। हमें कम्प्यूटर विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी में एक व्यापक और सुव्यवस्थित पाठ्यचर्या को विकसित करने वेफ मुद्दे को भी हल करना होगा जो शिक्षा से जुड़ लोगों, प्रशासकों और आम जनता वेफ बीच संवाद का आधर बन सवेफ। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा जिस मुद्दे पर संजीदगी से विचार करती है वह हमें इन बिंदुओं पर भी सोचने पर मजबूर करती है कि हम जिन साध्न विपन्न माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों वेफ माध्यम से तकनीकी शिक्षा दे रहे हैं वह क्या पर्याप्त हैं। क्योंकि समस-समय पर पड़तालिया खबरें आती रही हैं कि कितने हजार स्वूफल आज भी टेंटो, पेड़ की छाया में चलते हैं। जहाँ शौचालय व पीने का पानी के साथ ही अन्य बुनियादी सुविधओं के अभाव में चल रही हंै। क्या हम इन संसाध्नों वेफ अभाव में सूचना-ज्ञान व शिक्षित विकसित समाज की परिकल्पना कर सकते हैं। क्योंकि प्रौद्योगिकी-शिक्षा एवं शैक्षिक-तकनीक बिना कम्प्यूटर, वेफबल, बिजली की संभव नहीं है।
तकनीकी व प्रौद्योगिकी शिक्षा वेफ क्षेत्रा में जिस प्रश्न को उठाया जाना चाहिए वह है ‘प्रौद्योगिकी किसवेफ लिए’। प्रौद्योगिकी शिक्षा को जनता की वास्तविक जरूरतों की पूर्ति करनी चाहिए न कि उपभोक्तापरक समाज की बतलाई जरूरतों की। यह आवश्यक हो गया है कि प्रौद्योगिकी और ग्रामीण क्षेत्रों में उसवेफ प्रयोग का पूर्ण रूपेण पुनर्मूल्यांकन किया जाए। इस मुद्दे पर बड़ी ही गंभीरता से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 विचार करती है। तकनीकी और प्रबंध् शिक्षा वेफ पुनर्गठन पर विचार करना जरूरी है। इस शताब्दी वेफ आरम्भ पर प्रत्याशित तस्वीर वैफसी होगी इसकी कल्पना कठिन नहीं है। ;राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की समीक्षा समिति 1990द्ध यह दस्तावेज प्रौद्योगिकी शिक्षा को लेकर जो सिपफारिशें दी हैं उनका लब्बोलुवाब यही है कि माध्यमिक, उच्च-माध्यमिक स्तर पर कम्प्यूटर-तकनीक शिक्षा को पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। बीच-बीच में अध्यापकों की ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की जाए। प्रौद्योगिकी वेफ जिन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में जहां कमियां है वहां सुविधओं को मजबूत बनाना। उदीयमान प्रौद्योगिकी वाले क्षेत्रों में आधर संरचना का सृजन। साथ ही नयी प्रौद्योगिकियों वेफ कार्यव्रफम को प्रोत्साहित करने वेफ लिए योजना तैयार किया जाए। दस्तावेज की मानें तो प्रौद्योगिकी वेफ क्षेत्रा में देश को प्रगति करनी ही चाहिए। आध्ुनिक तकनीकी व प्रौद्योगिकी शिक्षा में देश वेफ अपने पुरातन ज्ञान की जानकारी निहित होनी चाहिए ;10.2.6 वहीद्ध
2009-10 वेफ अंतरिम बजट पर नजर डालना लाजमी होगा। क्योंकि वित्तमंत्राी ने वित्तीय बजट में 6 नए भारतीय प्रबंध्न और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की स्थापना की घोषणा की है। इनमें से 4 संस्थान इसी शैक्षिक वर्ष ;2009-10द्ध में शिक्षण कार्य आरम्भ कर देंगी। विश्वविद्यालयों, भारतीय-प्रौद्योगिक संस्थानों एवं भारतीय प्रबंध्न संस्थानों की स्थापना की घोषणा वैसे वित्त वर्ष 2008-09 में ही की जा चुकी थी। लेकिन इस वित्त वर्ष 2009-10 में 6 प्रौद्योगिक संस्थान बिहार, आंध््र प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में शुरू हो चुवेफ है। दो और आई आई टी मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में 2009-10 में शुरू होंगी। लेकिन महज संस्थानों की स्थापना भरकर देने से सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा की विकास हो सवेफगी ऐसा सोचना ग़लत होगा। क्योंकि सच्चाई तो यह है कि विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी शिक्षा की गुणवत्ता का लक्ष्य उन संस्थानों को आवश्यक संसाध्नों जरूरी ध्न मुहैया कराने पर ही हासिल हो पाएगा। मौजूदा कई प्रौद्योगिकी, प्रबंध्न एवं वेफन्द्रीय विश्वविद्यालय प्राध्यापकों की कमी वेफ संकट से गुजर रहे हैं। इसका खुलासा जी.वेफ. चड्डा वेतनमान संशोध्न कमेमटी की उस रिपोर्ट में किया गया है जो 47 विश्वविद्यालयों वेफ अध्ययन पर आधरित है। रिपोर्ट में बताय गया है कि हर विश्वविद्यालय में 45-52 पफीसदी अध्यापकों की सीट खाली है। इसका मतलब यह हुआ कि वुफल 2,469 पदों में से सिर्पफ 1,367 पदों को ही भरा जा सका है। इन विश्वविद्यालयों में 51 पफीसदी रीडर वेफ पद और 52 पफीसदी लेक्चरर वेफ पद खाली हैं। वहीं स्थिति तो यह है कि वेफन्द्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वालों की 25 पफीसदी पद अभी भी रिक्त ही हैं।
देश में ज्ञान आधरित बनाम सूचना संपन्न समाज की स्थापना वेफ सपने को साकार करने वेफ लिए सरकारी पहल कदमियों की आहट भी स्पष्ट सुनी जा सकती है। इस परियोजना को साकार करने वेफ लिए वित्त वर्ष 2009-10 में तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने वेफ लिए 3,185 करोड़ प्रदान करने की घोषणा की गई है। वहीं अनुसंधन और विकास तथा सूचना प्रौद्योगिकी वेफ विकास को रफ्रतार में लाने वेफ लिए 2,380 करोड़ रुपए का प्रावधन किया गया है। एक सूचना संपन्न समाज देश की रचना-प्रव्रिफया जून 2005 में ही शुरू हो चुकी थी। भारत में संचार व्रफांति वेफ अग्रगदूत सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में एक 8 सदस्यीय ‘राष्ट्रीय ज्ञान आयोग’ आयोग की स्थापना की गई। इस परिषद् ने 12 जनवरी 2008 को अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट प्रधनमंत्राी को सौंप दी। इस परिषद् ने कई महत्वपूर्ण सिपफारिशें कीं जिसमें एक यह भी शामिल था कि शिक्षा पर जीडीपी वेफ 0.8 पफीसदी व्यय को बढ़ाकर 2.5 पफीसदी किया जाना चाहिए। साथ ही, एक ‘नेशनल-इंस्टीट्यूट आॅपफ वोवेफशनल एजुवेफशन कमीशन प्लानिंग-एंड डेवलपमेंट’ वेफ गठन पर भी जोर देता है। थोड़ा और पीछे चलें तो पाते हैं कि 2007-08 वेफ बजट में व्यावसायिक शिक्षा मिशन की शुरूआत की गई। इसवेफ लिए 50 करोड़ रुपए का बजटीय प्रावधन प्रारम्भिक स्तर पर किया गया है। गोविन्द बल्लभ कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देने वेफ लिए भी सरकार ने बजट में विशेष पैवेफज की घोषणा की।
सूचना प्रौद्योगिकी स्कूल, विश्वविद्यालयों से गुजरती हुई एक ऐसे समाज वेफ निर्माण में शामिल हुई जहाँ लंबे समय से ‘सूचना का अध्किार’ की मांग उठ रही थी। अंततः आम जनता को सूचना हासिल करने का अध्किार मिल चुका है। लेकिन यह एक सवाल स्वभाविकताः उठता है कि क्या कोई भी सूचना सिर्पफ वुफछ तथ्यों, घटनाओं व आंकड़ों का महज संयोजन हैं एक घटना जिस रूप में घटित होती है, ठीक उसी रूप में हमारे पास नहीं पहुँचती। बल्कि कहना चाहिए नहीं पहुँच सकती है। कोई एक तथ्य सूचना बनने की प्रव्रिफया में कई बातों को अपने से अलग और कई को अपने में समेटती चलती है।
ज्ञान-सूचना संपन्न समाज की परिकल्पना का सीध साबका सूचना प्रौद्योगिकी से है। किसी भी वर्गीय समाज की दो श्रेणियाँ होती हैं। पहला, वह समाज जिसका उत्पादन वेफ साध्नों पर अध्किार होता है। दूसरा, जो उत्पादन की प्रव्रिफया से जुड़ा होता है। लेकिन गौरतलब यह भी है कि जिसका इन साध्नों पर अध्किार नहीं होता। उसे हम आम पफहम भाषा में सूचना व्रफमिक कह सकते हैं। और हमारे समाज में दूसरे वर्ग वेफ यानी सूचना श्रमिकों की भीड़ है। दूसरे शब्दों में कहें तो सूचना प्रौद्योगिकी से निर्मित समाज पर उन्हीं वर्गों का आध्पित्य है जो सूचना तकनीक से संपन्न हैं। यांत्रिक उपकरणों वेफ जरिए व्यक्ति भी सूचना का निर्माण कर सकता है। इतना ही नहीं बल्कि उसका संग्रह, प्रसारण और उसे प्रभावित भी कर सकता है। लेकिन इसवेफ लिए उसवेफ पास सूचना प्रौद्योगिकी को हासिल करने वेफ लिए जरूरी आर्थिक क्षमता का होना बेहद आवश्यक है।
ज्ञान-सूचना आध्ृत समाज की अगर वेफन्द्रीय-विशेषता को जानना चाहें तो यह होगा कि यह वही समय है जब प्रौद्योगिकी विकास ने सूचना और संचार को पूरी तरह से एक दूसरे में समा चुवेफ हैं। इस सम्मिलन की प्रव्रिफया संभव हुई कम्प्यूटर और उपग्रह प्रणालियों की मदद से। जहाँ तक सूचना प्रौद्योगिकी वेफ आर्थिक पक्ष का मामला है तो यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देखे जा सकते हैं। आर्थिक गतिविध्यिों को बहुराष्ट्रीय करण वेफ आधर पर सूचना- प्रौद्योगिकी वेफ व्यापक इस्तेमाल वेफ द्वारा विभिन्न देशों की आर्थिक चूलें हिला दी हैं। इतना ही नहीं बल्कि आर्थिक मामलों में देश की स्वतंत्रा निर्णय लेने की क्षमता को भी खासे प्रभावित किया है।

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