"तेरी दहाड़ के विरूद्ध "

तूने क्या सोचा,हम तेरी दहाड़ से सदा डरते रहेंगे?हम जब वनों में रहा करते थे,हमारे पास तन ढकने तक को कपडे न होते थे,हम ठण्ड में काँप रहे होते थे और उसी वक्त तेरी दहाड़ सुन कर ठण्ड में भी पसीने आ जाया करते थे|तब तुम हमें बहुत सताते थे |हमें चैन की नींद सोना भी नसीब नहीं होता था |तभी हमने ठान ली थी,तभी से हमारी कांटे की टक्कर चली आ रही है|हमने जब से एक शब्द 'विकास' का अर्थ जान लिया फिर तुम्हारे दहाड़ से पैदा होने वाला डर धीरे-धीरे जाता रहा |तब तुम सर उठा, सीना तान कर वनों में भ्रमण करते थे ,अब हम तुम्हारा सर लिए जंगलों से होते हुए शहर और शहरों से होते हुए पुरे विश्व में भ्रमण करते हैं|

अब तुम्हें मेरी बातें समझ में आ रही होंगी की दिनों दिन तुम्हारे सरों की संख्यां कम क्यों होती जा रही हैं|तुम्हें पता होना चाहिए की हम मनुष्य लड़ाई झगरे और युद्धों में माहिर हो चुके हैं| हम जिसके विरूद्ध एक बार ठन जाते हैं उसकी खैर नहीं |और हमारी तो तुमसे आदिकाल से ठानी हुई है |
सब समय का खेल है|तब तुम हमारा शिकार करते थे ,अब हम तुम्हारा शिकार करते हैं|तुम्हारे शिकार पद्धति में और हमारे शिकार पद्धति में अंतर बस इतना है कि तुम भूख मिटने के बाद शिकार नहीं करते और हम भूख मिटने पर भी भूखे होने का नाटक कर शिकार करते हैं|और अब तो हमें हमेशा भूखे होने कि आदत सी पड़ चुकी है.....................इसलिए तुम अपनी दयनीय स्थिति का कारण खुद ही समझ सकते हो....|

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting