swargvibha banner

होम रचनाकार कविता गज़ल गीत पुस्तक-समीक्षा कहानी आलेख E-Books

हायकु शेर मुक्तक व्यंग्य क्षणिकाएं लघु-कथा विविध रचानाएँ आमंत्रित

press news political news paintings awards special edition softwares

 

 

1 -
वे-
खड़े नहीं होते
शायद डर हैं-
उन्हें दूसरे के बैठने के जाने का।

2-

वे-
राजसुख पाने को विकल भाग रहे
त्याग दिया सब कुछ
अपना भाग्य नाप रहे।

3-

वे-
राष्ट्र भाषा के सच्चे प्रचारक हैं
इसीलिए-
अपने बच्चों को कान्वेंट से
लेकर आ रहे हैं।

4-

उनका-
प्रतिपल साया सा साथ रहा
इसीलिए-
हिन्दी के प्रचार -प्रसार में
कागजों तक हाथ रहा।

5-
वे-
अत्यधिक आगे हैं
शायद
चप्पल हाथ में लेकर
भागे हैं।

6-
वे-
उगे थे घूरे पर
उठाकर रख दिया दीवार पर
आज आंखें दिखा रहे हैं।

7-

वे-
गिरे लेकिन जमीन पर नहीें;
जमीर से
अपने व अपनों के लिए।

8-

वे-
अपने प्रत्येक कार्य हित
प्रतिक्षण आगे हैं
अपराधी हैं किन्तु-
मिटाने अपराध ही भागे हैं।

9-

वे-
आज तक हारे नहीं
इसीलिए-
आश्वासन देने को
आज तक पधारे नहीं।

10-

वे-
त्याग की अपूर्व मूर्ति कहलाते
सड़क हो या संसद
सहे सभी जगह जाते।

11-

वे-
वह कीड़े हैं
जो स्वार्थ खाता है
पचाकर सभी कुछ सिर्फ;
अंगूठा ही दिखाता है।

12-

शारीरिक सुडौलता
एक्स-वाई का मेल
यदि पालक विपरीत
बनती अनोखी रेल।

13-

वे-
बरसाती रंग में रंग गए
बरसात जो हुई पद की
कपड़े सा धुल गए।

14-

हमारे -
राष्ट्रपिता ने जिनको
सबकुछ सिखलाया
आज जनता ने उनको
पद की वर्षा से धुला पाया।

15-

वे-
पहले थे सिद्धांतवादी
देख रहे अपने-अपनों का;
सिर्फ-
दयालुता के आदी।

16-

वे-
जब से आए बदल गए
स्वंय बने खिवैया
कश्ती घर ले गए।

17-

वे-
आज बदल गए
आगे इतना बढ़े
टूटी चप्पल से
हवाई जहाज मे पहंुच गए।

18-

उन्होंने-
इरादा बदला
पीछे मुड़े जो
चला नहले पे दहला।

19-

वे आगे थे हैं रहेंगे
पर निष्ठावान समर्पण पर हित
इसी को जपेंगे।

20-
उन्होंने-
निष्ठा दिखलायी
समक्ष आपके ही
मात्र पीठ दिखलायी।

 

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting