ग़ज़ल–अम्बरीष श्रीवास्तव


आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.
जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.
आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,
नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.
घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,
आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.
आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,
कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.

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