आँखों की दहलीज़ पे आकर बैठ गयी
तेरी सूरत ख़्वाब सजाकर बैठ गयी
कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैंने
फ़ौरन उसपर तितली आकर बैठ गयी
ताना-बाना बुनते-बुनते हम उधड़े
हसरत फिर थककर,ग़श खाकर बैठ गयी
खोज रहा है आज भी वो गूलर का फूल
दुनिया तो अफवाह उड़ाकर बैठ गयी
रोने की तरकीब हमारे आई काम
ग़म की मिट्टी पानी पाकर बैठ गयी
वो भी लड़ते-लड़ते जग से हार गया
चाहत भी घर-बार लुटाकर बैठ गयी
बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन
गुड़ियों का अम्बार लगाकर बैठ गयी
अबके चरागों ने चौंकाया दुनिया को
आंधी आखिर में झुंझलाकर बैठ गयी
एक से बढ़कर एक थे दांव जुआरी के
जीत मगर उससे कतराकर बैठ गयी
कुछ लोगों की भीड़ उठी और आंगन में
नफ़रत की दीवार उठाकर बैठ गयी
तेरे शह्र से होकर आई तेज हवा
फिर दिल की बुनियाद हिलाकर बैठ गयी
........इरशाद खान सिकंदर ...........