मैं किसी के हाथ की बिगड़ी हुई तकदीर हूॅ,
बदनसीबी की नुमाइस में रखी तस्वीर हूॅ
आपकी सैये मुसलसल अरु पिंजीराई के बाद
जो कभी पूरी न हो पाई वही तदवीर हूॅ
क्या भला कर पाऊंगा अपने यारों का कि मैं
वक्त के हाथों से इक टूटी हुई शमशीर हूॅ
मुझपै हक दिखलाने वाले सोच ले इक बार फिर
मैं फकत जननी की और धरती की जागीर हूॅं
मेरी गैरत ने मुझे हर वक्त ही रूस्वा किया,
जिसको कोई पढ़ न पाया मैं वही तहरीर हूॅ
देश संसद वतन से नाआश्ना लगते तो हैं
मौजे तूफांनो पर संसद में कही तकरीर हूॅ
मुब्तदी हूं शाइरी में सच बताता हूं ‘सुशील’,
गालिबों, मोमिन नहीं हूं और न कोई मीर हूॅ