दहशत की मंज़िल दिख़लाने वाला था
वो मौसम बेघर कर जाने वाला था
सब से पहले मुझको जख़्म दिये उसने
मैं ही उसको प्यार सिख़ने वाला था
उसने ही ख़ुद हाथ हटाये थे पीछे
मैं तो उस पर जान लुटाने वाला था
चुप चुप थे सब अपने अपने घर में बस
शायद कोई तूफ़ाॅं आने वाला था
मेरी लाख़ों मिन्नत भी कुछ काम न आई
शायद वो घर छोड़ के जाने वाला था
मौसम ही ने बदल लिये तेवर अपने
मैं गुलशन में फ़ूल ख़िलाने वाला था
सबकी ज़ान का दुशमन जब दम तोड़ चुका
सब ख़्ुाश थे मैं ख़ैर मनाने वाला था
तू ही उजालों से क्यूॅं है महरूम ‘विज़य’
तू भी तो इक दीप जलाने वाला था