कर गई लौ दर्दे-दिल की इस तरह रीशन जहाँ
कौंधती है बादलों में जिस तरह बर्क़े-तपाँ
साँस का ईंधन जलाया तब कहीं वो लौ जली
देखकर जिसको तड़पती रात की बेचैनियाँ
वो जली जलकर बुझी, फिर ख़ुद-ब-ख़ुद ही जल उठीं
बुझ न पाई शम्अ दिल की, आईं कितनी आंधिया
उतनी ही गहराई में वो गिरता है ख़ुद ही एक दिन
खोदता जितना जो औरों के लिए गहरा कुआँ
खो गया था कल जो बचपन, आज फिर लौट आया है
गूंज उठी आंगन में मेरे फिर वही किलकारियाँ
बेज़ुबां क्या कह रहा हैकुछ सुनो, समझो ज़रा
अनसुना करके न लादो उनपे ज़िम्मेदारियाँ
मेंने मौसम की पढ़ी अख,बार में ' देवी' ख़बर
थी ख़बर ये, बाढ़ में ,हफूज़ था मेरा मकाँ
देवी नागरानी