इस देश से ग़रीबी हट कर न हट सकेगी

इस देश से ग़रीबी हट कर न हट सकेगी
मज़बूत उसकी जड़ है, हिल कर न वो हिलेगी
धनवान और भी कुछ धनवान हो रहा है
मुफ़लिस की ज़िंदगानी, ग़ुरबत में ही कटेगी
चारों तरफ़ से शोले नफ़रत के उठ रहे हैं
इस आग में यक़ीनन, इन्सानियत जलेगी
नारों का देश है ये, इक शोर- सा मचा है
फ़रियाद जो भी होगी, वो अनसुनी रहेगी
सावन का लेना देना ‘देवी’ नहीं हैं इससे
सहरा की प्यास हैं ये, बुझकर न बुझ सकेगी

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting