-हरिहर झा
मौत हम पर, छायेगी धीरे धीरे
गोश्त डायन खाएगी धीरे धीरे
सांस दर्दों में क्यों कर आहे भरती
टूट कर भी, गाएगी धीरे धीरे
रूठ के चल दी जाने किस कोने में
जा के वापस आएगी धीरे धीरे
लाज ना आये पल्लू में मुस्काती
तर्ज मेरी भाएगी धीरे धीरे
ये अदायें फैंको संभल कर वर्ना
रंग छोड़े जाएगी धीरे धीरे।