इश्क का दरिया बहुत है गहरा, मैं बहती हूॅ जाने कब से । जानबूझकर अनजाने
से, इकरार किया है जाने कब से।
आस बहुत है प्यास बुझेगी, कली खिलेगी हृदय कमल की, दिल पिघलाकर जानबूझकर,
प्यार किया है जाने कब से।
मगर यकीं है बीच भंवर से वह, मुझे किनारे तक लायेगा, बहुत आस है, मिलने
की इंतजार किया है जाने कब से।
शून्य उभरकर उम्र लिए जाता फिर भी कोई ठहराव नहीं है, उम्मीदों से फिर भी
तन का श्रंगार किया है जाने कब से।
पता नहीं मुझे बचाने कब आयगा औ किनारे कब लायेगा, सुखमय जीवन जीने का
एतबार किया है जाने कब से।
हृदय पटल पर, आॅख मूंदकर छायाचित्र किसी का देखा, उसे कामना ने पलकों पर
उतार दिया है जाने कब से ।