मिलके बहतीं है यहाँ गंगो- जमन
हामिए-अम्नो-अमाँ मेरा वतन
वो चमन देता नहीं अपनी महक
एक भी गद्दार जिसमें हो सुमन
अब तो बंदूकें खिलौना बन गईं
हो गया वीरान बचपन का चमन
दहशतें रक्साँ है रोज़ो-शब यहाँ
कब सुकूँ पाएंगे मेरे हमवतन
जान देते जो तिरंगे के लिये
उन शहीदों का तिरंगा है कफ़न
देश की ख़ातिर जो हो जाएं शहीद
ऐसे जाँ-बाज़ों को ‘देवी’ का नमन