ये बात सबने मान ली, इसे किसे इनकार है
संसार तो हमदम तेरे, साये का ही विस्तार है

मेरी समझ में आज तक, ये बात आयी ही नहीं
सबकुछ है तेरे हाथ में . फिर क्या मेरा किरदार है
जिन पर हजारों बंदिशे है कायदे कानून की
मन मेरा देखो आज भी उन सरहदों के पर है

खुद को हमेशा भूलकर दुनिया की देता है खवर
ये आदमी मेरी नजर में सिर्फ इक अख़बार है
ये हुस्न तेरा जानेमन जन्नत का रास्ता है मगर
जो खुद का होकर रम गया उसके लिए बेकार है

रखता हूँ इससे फासला खुद को बचाने के लिए
ये जिन्दगी सच ही अमन गिरती हुई दीवार है
हेमंत त्रिवेदी [अमन]

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