“उड़ चला है आज मन पतंग की तरह ”


आज फिर रंगों हमें अनंग की तरह,
मन अधीर हो रहा विहंग की तरह |
रंग की फुहार आज रंग डालती,
बालपन में छा गयी उमंग की तरह |
नैन तक झुके है नेह स्वप्न देखकर,
काश वो हों सामने तरंग की तरह |
केमिकल से रंग आज खेलना नहीं,
साथ छोड़ दो सदा कुसंग की तरह |
प्यार से हमें यहाँ लगा लिया गले,
गा रहा है आज मन मलंग की तरह |
मुस्कुराहटें सभी हैं प्रीति से खिलीं
साज बज रहे सभी मृदंग की तरह |
दन्त पंक्ति खिल उठी ज्यों श्वेत हो लड़ी,
मेघ मध्य दामिनी प्रसंग की तरह |
रंग से चुरा लिए हैं रंग आज ही,
बिन पिए ही चढ़ गये है भंग की तरह |
रंग की रंगीली नेह डोर थाम के,
उड़ चला है आज मन पतंग की तरह |
अपने-अपने साजना का साथ ही मिले,
अब नहीं दिखे कोई भुजंग की तरह |

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