न जाने अब क्यूं मेरे साथ मेरा मन नहीं जाता
कि जैसे तुझ से मिलकर दिल का खालीपन नहीं जाता |
यूं सारी रात उनसे ख्वाब में बातें तो होतीं हैं
सुबह उठने पे लेकिन मन का भारीपन नहीं जाता |
रवायत है या आदत है अजब फ़ितरत है दुनियां की
जतन कितना भी कर लो इसका टेढापन नहीं जाता |
परायों ने नहीं ये दिल मेरा अपनों ने तोडा है
मगर नादानि-ए-दिल है कि अपनापन नहीं जाता |
अना ने साथ कब छोडा गो कितनी बार टूटा हूं
किसी के सामने फ़ैला के मैं दामन नहीं जाता |
कोई अच्छी जो शै देखी मचल उठता है पाने को
खुदाया ’आरसी ’ अब भी तेरा बचपन नहीं जाता |
-आर. सी. शर्मा “आरसी”