उसका पावन मन देखा है
सितारों को ओढ़े कफ़न देखा है
कैसे कोई भरोसा करे किसी पर
दोस्त सा न कभी , दुश्मन देखा है
चाहत का हर फ़ूल खिले जहाँ
ऐसा न कोई , चमन देखा है
इस रंग बदलती दुनिया में
अपनों का परायापन (बेगानापन) देखा है
कभी फ़ूलों से झड़ती आग, कभी
चाँदनी में , दहकता गगन देखा है