जीते जी रिश्ता-ए-दिलवर तुमसे तोड़ा नहीं गया,
चाहा बहुत चाहकर भी यादों का साया नहीं गया।
मेरी हिम्मत कह लो मेरे अरमानों की जीत कहो,
खुद से या जग से यह राज छुपाया नहीं गया।
तुमको माना दवा दर्द की तुम्हें सुनाया दर्दे दिल,
मेरा दिल बीमार हो गया तुम्हें बताया नहीं गया।
रात रात भर जागे अरु आतीं रहीं तुम्हारी यादें,
सुबह भुलाने की कोशिश मगर भुलाया नहीं गया।
मिलती नहीं मुक्ति इस दिल को प्रिये तुम्हारी यादों से,
बहुत संभाला मैने दिल को मगर संभाला नहीं गया।
जब से मिला सुशील गुरू से अश्क चषकभर पीता है,
लव तक आया जामे मोहब्बत गले उतारा नहीं गया।
रहे मुक्तदी सुशील शुरू से जीते रहे तबब्बुर में,
नाम हथेली पर खुदवाया मगर दिखाया नहीं गया।