उम्र के हसीन दिन सरहद पर बिताये हमने
दुश्मनों से दोस्ती कर, हाथ मिलाये हमने।

बड़ी होती है सबसे सरजमीं की जिन्दगी,
ज़ज़वात वफादारी के सबको सिखाये हमने।

खुदा गवाह है दुश्मनी की है मोहब्बत से,
उनकी राहों में महकते फूल बिछाये हमने।

इश्क और शर्त के ख्यालात जुदा होते हैं,
एलबम महबूब के खुद से छिपाये हमने।

रूबरू होकर भी उनसे दूरियां कैसी,
अपने अश्आर सरेआम सुनाये हमने।

ग़ज़ल कही है डुबोकरके लाल स्याही में,
खोल के जख्म काग़ज़ पै दिखाये हमने।

मुक्तदी मुफलिसी का दूजा नाम होता है,
हर किताबघर पै सिपाही बिठाये हमने।

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