उमर के साथ साथ किरदार बदलता रहा
शख्सियत औरत ही रही ,प्यार बदलता रहा .

बेटी,बहिन,बीबी, कभी माँ , ना जाने क्या -क्या
चेहरा औरत का दहर हर बार बदलता रहा .

हालात ख्वादिनों के न सदी कोई बदल पाई
बस सदियाँ गुज़रती रहीं ,संसार बदलता रहा .

प्यार ,चाहत ,इश्क ,राहत ,माशूक और हयात
मायने एक ही रहे ,मर्द बस बात बदलता रहा .

किसी का बार कोई इंसान नहीं उठा सकता यहाँ
पर कोंख में जिस्म पलकर आकार बदलता रहा .

सियासत ,बज़ारत,तिज़ारत या फिर कभी हुकूमत
औरत बिकती रही चुपचाप यह बाज़ार बदलता रहा .

कब तलक बातों से दिल बहलाओगे "दीपक ”तुम भी
करार कोई दे ना सका बस करार बदलता रहा

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